भारतीय पञ्चांग एवं ईसवी सन् (Georgian Calendar)
इं. आलोक शर्मा
लेखक साफ्टवेयर इंजीनियर तथा ज्योतिष अलंकार हैं।
कुछ समय से मेरे पूज्य पिता के आशीर्वाद से मुझे पंचांग गणित पड़ने का अवसर मिला, रह रह कर अब समझ आता है की पिताजी रात को २-३ बजे तक कैलकुलेटर के साथ क्या करते रहते थे | कैलकुलेटर से गणना कर किसी रफ़ कागज़ पर एक बड़ी सी संख्या (दशमलव के कई अंकों तक) लिखते थे | फिर गणित करना फिर सोचना और गणित करना |
पंचांग गणित के स्वाध्याय से मुझे यह अवगत होने लगा की सूर्य और चन्द्र, गौर करें तो चन्द्रमा का पंचांग गणित में बहुत ही महत्वपूर्ण योगदान है | कुछ समय पूर्व ही मैनें चन्द्रमा पर प्रचलित लोकोक्तियाँ एवं कहावते खोजनी चाहि.. जैसे की –
१. अद्रा भद्रा कृत्तिका, अद्र रेख जु मघाहि।चँदा ऊगै दूज को सुख से नरा अघाहि।।
यदि द्वितीया का चन्द्रमा, आर्द्रा नक्षत्र, कृत्तिका, श्लेषा या मघा में अथवा भद्रा में उगे तो मनुष्य सुखी रहते हैं।
२. असाढ़ मास पूनो दिवस, बादल घेरे चन्द्र।तो भड्डरी जोसी कहैं, होवे परम अनन्द।।
अगर आषाढ़ माह की अष्टमी को अन्धकार छाया हुआ हो, और चन्द्रमा बादलों से निकले तो बहुत आनन्ददायी वर्षा होगी और पृथ्वी पर आनन्द की बारिश सी होगी। ऐसा भड्डरी ज्योतिषी कहते है |
ऊपर की कहावते यह एहसास कराती हें, कि हमारे पूर्वजो का गणित ज्ञान इतना बलशाली था की चन्द्र और सूर्य की गति से निर्धारित होने वाली तिथी एवं चन्द्रमा का नक्षत्रो में रहने के समय जैसी सूक्ष्म गणना और उन के आधार पर ज्योतिष विवेचन उनके लिए आम था |
३. ईद का चाँद (कभी कभार दिखना, लगभग साल में दो बार दिखना)
इसी क्रम में एक अंग्रेजी की कहावत वन्स इन अ ब्लू मून (कभी कभार, वैरी रेयर) भी याद आई, तो मेने इस को गूगल.कॉम पर लिखा तो उत्तर मिला = 1.16699016 × 10-8 hertz???
४. वन्स इन अ ब्लू मून -
विकिपीडिया के एक पेज पर इसके बारे में जानकारी मिली, वहाँ बताया है कि यह एक कहावत एक खगोलीय घटना को दर्शाती है | घटना का विवरण इस प्रकार है कि जब किसी अंग्रेजी महीने (Georgian calendar Month) में दो फुल मून (भारतीय पंचांगानुसार - पूर्णिमा) पड़े तो उसे वन्स इन अ ब्लू मून कहते हैं, यह घटना लगभग २.७१४५ वर्ष बाद होती है | परन्तु, यहाँ पर इस गणना का विवेचन न मिलने कि वजह से मुझे उत्सुकता हुई कि यह 1.16699016 × 10-8 hertz कैसे बन गया | अतः मैंने इसे जानने का एक प्रयास किया जो कि निम्नलिखित है|
जैसे कि हर्ट्स आवृत्ति कि एक मापन इकाई है (आवृत्ति प्रति सेकंड) अतः
२.७१४५ वर्ष में इस घटना कि आवृत्ति = १
१ वर्ष में होने इस घटना कि आवृत्ति = १/२.७१४५
१ दिन में इस घटना कि आवृत्ति = १/(२.७१४५ * ३६५.२५)
१ घंटे मैं इस घटना कि आवृत्ति = १/(२.७१४५ * ३६५.२५*२४)
१ मिनट मैं इस घटना कि आवृत्ति = १/(२.७१४५ * ३६५.२५*२४*६०)
१ सेकंड मैं इस घटना कि आवृत्ति = १/(२.७१४५ * ३६५.२५ * २४* ६० * ६०) = १/85663105.2 = 1.167× 10-8
अतः ब्लू मून की प्रति सेकंड आवृत्ति = 1.167× 10-8 लगभग 1.16699016 × 10-8 हर्ट्स
जबकि २.७१४५ = ३२ माह १७ दिन ५ घंटे १६ मिनट ५७ सेकंड (गूगल द्वारा प्राप्त औसत समय)
इसी क्रम में मैंने पाया कि भारतीय पंचांग में इससे मिलाती-जुलती एक गणना है, अधिक मास | जैसा कि भारतीय पंचांग के कंप्यूटर प्रोग्राम के निर्माण में मेरा बहुत समय अधिक मास निर्णय में गुजरा और मैनें पाया कि यह ब्लू मून से एकदम अलग है, जबकि यह बात तो है इन दोंनो की आवृत्ति एक दूसरे के बहुत कुछ आस पास है, परन्तु ये दोनो एक नहीं है |
अब आगे अधिक मास कि चर्चा करते हैं |
अधिक मास –
स्पष्टर्कसंक्रन्तिविहीन उक्तो मसोधिमासः क्ष्यमासकस्तु |
द्विसंक्रमस्तत्र विभागयोस्तत्स्तिथेर्ही मासौप्रथ्मान्त्यसंज्ञौ ||
शुक्ल प्रतिपदा से अमावस्यापर्यंत चंद्रमास है, यदि यह मास सूर्य कि स्पष्ट संक्रान्ति रहित हो तो अधिक मास (मलमास) या लौंध कहते है | इसी प्रकार उक्त मास में सूर्य कि स्पष्ट संक्रान्ति दो बार आयें तो क्षय मास होता है |
टिप्पणी :
अर्थात यह का सकते है कि शुक्ल प्रतिपदा के प्रारम्भ समय (New Moon) या अमावस्या के अंत के समय से अगली अमावस्या अंत तक के समय को एक चंद्र मास कहते है | यहाँ लेखक का अभिप्राय है कि यदि एक चन्द्र मास में यदि सूर्य कि एक स्पष्ट संक्रान्ति न पड़े अर्थात पूर्ण चंद्र मास पर्यंत सूर्य एक ही राशि में रहे तो उक्त मास अधिक मास होगा – मतलब उक्त मास उस वर्ष में दो होंगे | यदि एक चन्द्र मास में यदि सूर्य कि एक स्पष्ट संक्रान्ति पड़े अर्थात एक चन्द्र मास में सूर्य दो रशियों में विचरण (दूसरी राशि में न्यून अंश, बहुत कम अंश चले) कर ले तो वह साधारण मास ही होगा, परन्तु यदि दो संक्रान्ति पड़ें अर्थात एक चन्द्र मास में सूर्य तींन रशियों में विचरण कर ले (दूसरी राशि पूर्ण एवं तीसरी राशि में न्यून अंश, बहुत कम अंश चले) तो वह मास क्षय मास होगा अर्थात उस वर्ष वह मास नहीं पड़ेगा | और क्षय मास नाम सूर्य के पूर्ण राशि चलने वाले (दो संक्रांतियों के मध्य कि राशि के अनुसार का नाम होगा) |
इसी क्रम में मुझे २०० वर्ष (सन १९०० से २१००) के पंचांग बनाने का अवसर मिला, २०० सौ वषों में पडने वाले सभी अधिक मासों का औसत आया २ वर्ष ९ माह २७ दिन २० घंटे ३० मिनट जिसको वर्षों में बदल कर 2.827374 प्राप्त हुआ | इन २०० वषों का गणितीय पंचांग इन्टरनेट के माध्यम से (हिंदी एवं अंग्रेजी में) मुफ्त उपलब्ध है – http://panchang.ptbn.in (पंचांग - पं. बैजनाथ शर्मा प्राच्य विद्या शोध संस्थान) |
कितने सौर वर्ष बाद अधिक मास की प्राप्ति होगी = २.८२७३७४
अतः २.८२७३७४ वर्ष में इस घटना कि आवृत्ति = १
१ वर्ष में होने इस घटना कि आवृत्ति = १/२.८२७३७४
१ दिन में इस घटना कि आवृत्ति = १/(२.८२७३७४ * ३६५.२५)
१ घंटे मैं इस घटना कि आवृत्ति = १/(२.८२७३७४ * ३६५.२५*२४)
१ मिनट मैं इस घटना कि आवृत्ति = १/२.८२७३७४ * ३६५.२५*२४*६०)
१ सेकंड मैं इस घटना कि आवृत्ति = १/(२.८२७३७४ * ३६५.२५*२४* ६०*६०) = १/ 89225153.1109512
अतः वन्स इन अ ब्लू मून की प्रति सेकंड आवृत्ति = 1.120760195005217 × 10-8
अतः अधिक मास की प्रति सेकंड आवृत्ति = 1.12× 10-8 हर्ट्स
हम कह सकते हें कि आधिक मास = 1.12× 10-8 हर्ट्स
साल २००१ से अभी तक पड़ने वाले ब्लू मून
तारीख माह तिथि पूर्णिमा प्रारम्भ पूर्णिमा अंत
11/1/2001 अश्विन पूर्णिमा 10/31/2001 5:04 11/1/2001 5:38 ब्लू मून
11/30/2001 कार्तिक पूर्णिमा 11/29/2001 21:17 11/30/2001 19:37
7/2/2004 आषाढ़ पूर्णिमा 7/1/2004 15:01 7/2/2004 10:48 ब्लू मून
7/31/2004 श्रावण पूर्णिमा 7/30/2004 21:32 7/31/2004 17:18
5/2/2007 वैशाख पूर्णिमा 5/1/2007 7:54 5/2/2007 9:45 ब्लू मून
5/31/2007 ज्येष्ठ पूर्णिमा 5/30/2007 23:33 5/31/2007 23:32
12/2/2009 मार्गशीष पूर्णिमा 12/1/2009 10:06 12/2/2009 7:19 ब्लू मून
12/31/2009 पौष पूर्णिमा 12/30/2009 22:30 12/31/2009 18:15
साल २००१ से अभी तक पड़ने वाले अधिक मास
माह माह प्रारम्भ माह अंत
अश्विन 9/3/2001 3:12 10/2/2001 19:16
अश्विन - अधिक 10/2/2001 19:16 11/1/2001 11:08
श्रावण 7/2/2004 16:39 7/31/2004 23:36
श्रावण – अधिक 7/31/2004 23:36 8/30/2004 7:53
ज्येष्ठ 5/2/2007 15:37 6/1/2007 6:34
ज्येष्ठ – अधिक 6/1/2007 6:34 6/30/2007 19:15
वैशाख 3/30/2010 7:56 4/28/2010 17:52
वैशाख – अधिक 4/28/2010 17:52 5/28/2010 4:37
भाद्रपद 8/2/2012 8:59 8/31/2012 19:31
भाद्रपद - अधिक 8/31/2012 19:31 9/30/2012 8:50
आश्चर्य कि बात तो यह है कि वन्स इन अ ब्लू मून का प्रतिपादन मार्च १९४६ से हुआ, इससे पहले इस कहावत का प्रयोग तृतीय फुल मून (तृतीय पूर्णिमा) को दर्शाने के लिए होता था | मेरा विचार इस लेख को यहीं समाप्त करने का बन चुका था | कि फिर से इन्टरनेट के माध्यम से मुझे ज्ञात हुआ कि वशिष्ठ संहिता में अधिक मास का औसत अंतराल ३२ माह , १६ दिन ८ घडी (३ घंटे १२ मिनट) बताया हैं | जैसा कि मैंने बताया था कि मेरी गणना से अधिक मास का औसत मान ३३ माह २७ दिन २० घंटे ३० मिनट जिसको वर्षों में बदल कर 2.827374 प्राप्त हुआ |
वसिष्ठ संहिता में अधिक मास का औसत मान = ३२ माह , १६ दिन ८ घडी (३ घंटे १२ मिनट)
अब प्रश्न यह है कि मेरी गणना ऋषि श्री वसिष्ठ की गणना से १ माह अधिक क्यूँ है, और निसंदेह मेरी गणना में कही त्रुटि रह गयी या फिर २०० वर्ष का ये औसत मान अपूर्ण है और मुझे लगभग २००० वर्ष के (इसवी सन के प्रारम्भ से) अधिक मासों के अंतराल का औसत देखना चाहिए, तब शायद औसत वर्ष संख्या में कुछ अंतर आये | परन्तु २००० वर्ष की गणना के लिए मुझे कम से कम १५ दिन का समय जरूर लगता, जबकि मेरी उत्सुकता बढ़ती ही जा रही थी, कि यह औसत कैसे आया क्या? क्या श्री वसिष्ठ जी ने २००० - ३००० साल तक होने वाले या हो चुके अधिक मासो का विश्लेषण कर के यह औसत मान निकाला? - उत्तर है, नहीं | और यह जानते ही मैंने २००० वर्ष के अधिक माह की गणना का विचार कुछ समय के लिए स्थगित कर दिया |
कई प्रयासों के बाद भी मुझे वशिष्ठ संहिता की पुस्तक तो उपलब्ध न हो सकी परन्तु कुछ और पुस्तकों से श्री वसिष्ठ जी के गणना का अनुमान लगा |
वृहद्दैवज्ञरज्जनम् के एक श्लोक में अधिक मास का औसत पहले से ही दिया हुआ है | -
ökत्रिन्शता गतैर्मासेर्दिनै: षोडशभिस्तथा |
घतिकानाम् चतुष्केण पतत्येकोSधिमासकः || (वृहद्दैवज्ञरज्जनम् पृ. १६९ श्लोक १२)
अर्थ : अधिक मास ३२ माह १६ दिन ४ घटी (१ घंटा २६ मिनट) के पश्चात माध्यम मान से होता है | अतः अधिक मास का औसत मान थोड़े से अंतर के साथ ही परन्तु विद्वानों को ज्ञात था |
वृहद्दैवज्ञरज्जनम् के अनुसार अधिक मास का औसत मान = ३२ माह १६ दिन ४ घटी (१ घंटा २६ मिनट)
विधि – १ (सूर्य सिद्धान्त – मय नामक असुर)
चान्द्रंमसोSधिमासश्च –
भवन्ति शशिनो मासाः सुर्येन्दु भगणान्तरम् |
रविमासोनितास्ते तु शेषा: स्युराधिमास्का: || (पृ. २१ श्लोक ३५)
एक महायुग में सूर्य और चंद्रमा के भगणो के अंतरतुल्य चान्द्रमास होते है | युगचान्द्रमास से युगसौरमास घटाने से अधिक मास होतें है |
एक महायुग में चान्द्रभगण = ५७७५३३३६
एक महायुग में सूर्यभगण = ४३२००००
एक महायुग में चान्द्रमास = दोनों का अंतर (चान्द्रभगण – सूर्यभगण) = ५७७५३३३६-४३२०००० = ५३४३३३६
एक महायुग में सौरमास = ४३२०००० X १२ = ५१८४००००
अतः एक महायुग अधिक मास = चान्द्रमास – सौरमास = ५३४३३३६ – ५१८४०००० = १५९३३३६
अतः १ अधिकमास पड़ेगा = ५१८४०००० / १५९३३३६ = ३२.५३५५१०४००८
अतः सूर्य सिद्धान्तानुसार १ अधिकमास का औसत मान = ३२ माह १६ दिन १ घंटा ३४ मिनट ३ सेकंड
कितने सौर वर्ष बाद अधिक मास की प्राप्ति होगी = २.७११२९२५३३४
१ सेकंड मैं इस घटना कि आवृत्ति = १/(२.७११२९२५३३४ * ३६५.२५*२४* ६०*६०) = १/८५५६१८८५.२५२०७४९
अतः अधिक मास की प्रति सेकंड आवृत्ति = 1.168744701047538× 10-8
विधि – २ (गोलाध्याय – श्री केदारदत्त जोशी द्वारा)
गोलाध्याय (श्री केदारदत्त जोशी) में इस गणना का एक प्रयास मिला –
ननु चान्द्रमाससावनात्सौर्मास्सावन्स्याधिक्त्वदर्शनात्क्थंतिविरुद्ध्मुक्तम् | चाद्रमासोSधिमास इति मन्दाशङकाया उत्तरं शलिन्याSSह् – सौरान्मासादिति |
यस्मात्कारणात्सौरन्मासात्सौर्मास्सावनादित्यर्थः | ऐन्दवश्चान्द्रमास: सावन्दिनमानात्मको लघीयानल्पस्तस्मात्कारणात्कल्पे ते लघुमान्भूताश्चान्द्राः, माससंख्यया चन्द्रमाससंख्योरन्तरे ये चान्द्रमासा अधिकास्ते तन्मिता अधिमासाः प्रदिष्टाः | द्व्योरन्तरे शेषस्य चन्द्रत्वेन सिद्हेरित्यर्थः || ११ || (पृ. १३३)
उक्त श्लोक का आशय यह है कि सौर मास से चांद्रमास लघु होने के कारण इन दोनों के भाग देने पर लब्धि अधिक होगी | एवं कल्प सम्बन्धी और चान्द्र मासों में कल्प और मास संख्या से कल्प्मास संख्या अधिक होती है | अतः सौर मास से चान्द्रमास संख्या जितनी अधिक होती है उसी माप से युग अधिमास महा-युगाधिमास या कल्पाधिमास संख्या अधिक ही होगी |
अतः एक सौर मास की सावन दिन संख्या = ३६५|१५|२२|३० / १२ = ३० | २६ | १७
चान्द्र मास की सावन दिन संख्या = २९ | ३१ | ५० को कम करने से सावानादिनात्मक शेष = ० | ५४ | २७ होता है |
यदि उक्त अन्तर से एक सौर मास कि प्राप्ति हुई तो एक चान्द्रमासानत्पाती सवंदिनात्मक संख्या में कितने सौर मास = (१ सौर मास * २९ | ३१ | ५०) / (० | ५४ | २७) = ३२ | १५ | ३१ | २८ | २७ मासों में एक चंद्रात्मक अधिक मास प्राप्त होगा |
कितने सौर मास में अधिक मास पड़ेगा = ३२.५१७८७४२२४८
गोलाध्याय के अनुसार अधिक मास का औसत मान = ३२ माह १५ दिन १२ घंटे ५२ मिनट १० सेकंड
कितने सौर वर्ष बाद अधिक मास की प्राप्ति होगी = २.७०९८२२८५२४
१ सेकंड मैं इस घटना कि आवृत्ति = १/(२.७०९८२२८५२४ * ३६५.२५*२४* ६०*६०) = १/८५५१५५०५.६४५८३३३
अतः अधिक मास की प्रति सेकंड आवृत्ति = 1.169378573450234× 10-8
विधि – ३ (मानक विधि – Standard Method)
मानक औसत चान्द्र मास =29.530589
मानक औसत सौर मास =30.436875
सौर मास एवं चान्द्र मास का अंतर = 0.906286
कितने सौर मास में अधिक मास पड़ेगा = (१*29.530589)/30.436875=32.5841831387
मानक विधि द्वारा अधिक मास का औसत मान = ३२ माह १७ दिन १२ घंटे ३६ मिनट ४२ सेकंड
कितने सौर वर्ष बाद अधिक मास की प्राप्ति होगी = २.७१५३४८५९४९
१ सेकंड मैं इस घटना कि आवृत्ति = १/(२.७१५३४८५९४९* ३६५.२५*२४* ६०*६०) = १/८५५१५५०५.६४५८३३
अतः अधिक मास की प्रति सेकंड आवृत्ति = 1.169378573450234× 10-8
विधि - ४ (कंप्यूटर गणना विधि – पं. बैजनाथ पंचांग – २०० वर्ष के औसत मान से )
२०० वर्ष में पड़ने वाले चान्द्र मासों का औसत = २९.५३०१२६२४ (२९ दिन १२ घाटे ४३ मिनट २२ सेकंड)
२०० वषों में पड़ने वाले सौर मासों का औसत = ३०.४३७१५८७४ (३० दिन १० घंटे २९ मिनट ३० सेकंड)
सौर एवं चान्द्रमास का अंतर = ३०.४३७१५८७४ - २९.५३०१२६२४ = ०.९०७०३२५
अतः कितने सौर मास में अधिक मास की प्राप्ति होगी = २९.५३०१२६२४/०.९०७०३२५=३२.५५६८५५७२
पञ्चांगानुसार अधिक मास का औसत मान = ३२ माह १६ दिन १६ घंटे ५६ मिनट १० सेकंड
कितने सौर वर्ष बाद अधिक मास की प्राप्ति होगी = २.७१३०७१३१
१ सेकंड मैं इस घटना कि आवृत्ति = १/(२.७१३०७१३१ * ३६५.२५*२४* ६०*६०) = १/८५६१८०१९.१७२४५६
अतः अधिक मास की प्रति सेकंड आवृत्ति = 1.167978434522937 × 10-8
अविश्वसनीय !! – ब्लू मून एवं अधिक मास की प्रति सेकंड आवृत्ति लगभग बराबर है | परन्तु ये दोंनो खगोलीय घटनाएं एक दूसरे से बिलकुल अलग है एवं आपस में कोई तार्किक सम्बन्ध नहीं रखती, यद्यपि दोनों घटनाये लगभग एक ही समय अंतराल के बाद पुनरावृत होती है |
अब हम कह सकते है कि अधिक मास = 1.167 × 10-8 लगभग = ब्लू मून
यह स्पष्ट है कि http://panchang.ptbn.in (पंचांग - पं. बैजनाथ शर्मा प्राच्य विद्या शोध संस्थान) द्वारा प्राप्त चान्द्र एवं सौर मास की गणना एवं सूर्य सिद्धान्त की गणना श्री वसिष्ठ जी की बात को ज्यादा सार्थक करती है | वसिष्ठ संहिता में अधिक माह ३२ माह , १६ दिन ८ घडी (३ घंटे १२ मिनट) जबकि पं. बैजनाथ पञ्चांग की गणना (३२ माह १६ दिन १६ घंटे ५६ मिनट १० सेकंड) एवं सूर्य सिद्धान्त की गणना (३२ माह १६ दिन १ घंटा ३४ मिनट ३ सेकंड) इससे मात्र कुछ घंटों का अंतर दर्शाती है | जबकि गोल्लाध्याय एवं मानक विधि से प्राप्त अधिक मास का औसत समय १ दिन से ज्यादा अंतर दर्शाता है |
मैं इस लेख का इस निष्कर्ष के साथ समापन करता हूँ कि खगोल विज्ञान एवं ज्योतिष के क्षेत्र में इतना आगे रहे और हमारा यह ज्ञान आज का नहीं हजारों सालों पुराना है, तो इस के क्षेत्र में हमारा योगदान पश्चिम विज्ञान के तुल्य नहीं तो कम से कम प्रयासरत क्यूँ नहीं है | इसका अर्थ है कि पश्चिम विज्ञान का प्रसार और उस पर कार्य निरंतर चल रहे है और हम अब अपने विज्ञान को भूलते जा रहे हैं |
हम अपने विज्ञान को तार्किक द्रष्टिकोण से क्यूँ नहीं देखते क्यूँ हमेशा पारंपरिक और सरल रास्ता अपनाते है | विद्वतजन ये वही लोग थें जिन के पास कंप्यूटर नहीं था लेकिन उनके सिद्धांत को प्रतिपादित और बनाए रखने के लिए आज हमें कंप्यूटर का इस्तेमाल करना पड़ता है | उनके गणितीय सिद्धांत और उनके गणना के सूत्र यह दर्शाते हैं कि वह अपने बुद्धि और विवेक का उपयोग किस हद तक करते थे | महान हैं वो ऋषि जिन्होंने आज से हजारों वर्ष पूर्व जो कह दिया वो आज भी सत्य है.... आप को शत शत नमन |
इस लेख से सम्बंधित सभी गणनाओं के कैलकुलेटर प्रोग्राम बना कर पं. बैजनाथ पञ्चांग की वेबसाईट पर डाल रहा हूँ |