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पूर्वाफाल्गुनी-नक्षत्र
फाल्गुनी अर्थात् श्वेत वर्ण। सिंह राशि में पूँछ की ओर स्थित चार श्वेत तारों का चतुर्भुज-समूह फाल्गुनी नक्षत्र का निर्माण करते हैं। इसमें पहले उगने वाले डेल्टा और थीटा सिंह नाम के दो तारे पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र बनाते हैं। यह नक्षत्र सिंह के पुढे पर स्थित है। फाल्गुन मास का नाम फाल्गुनी नक्षत्रों के नाम पर पड़ा। फाल्गुन मास की पूर्णिमा की रात्रि को चन्द्रमा इस नक्षत्र में स्थित होता है। पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र के देवता- भग ये भाग्य के देवता हैं। इनकी प्रसन्नता से भाग्योदय होता है। भग शब्द का साधारण अर्थ है 'देने वाला' या 'बाँटने वाला'। यास्क की व्याख्या के अनुसार भग सूर्य का वह रूप है, जो दिन में पूर्वाह्न की अध्यक्षता करता है।
तारों की संख्या : 2 तारे का वैज्ञानिक नाम: सिंह मण्डल के डेल्टा व थीटा तारे अयनांश 133920' से 146°40' तक राशि सिंह सूर्य का वास 30 अगस्त से 13 सितम्बर तक (लगभग)
पलाश (अर्थात् पत्ती) को संस्कृत में किंशुक (तोते जैसा फूल), पर्ण (पत्ती) वातपोध (वातनाशक), ब्रह्मवृक्षक, क्षारश्रेष्ठ, अंग्रेजी में Flame of the forest (वन ज्वाला) हिन्दी में - ढाक, पलाश, परास तथा वैज्ञानिक भाषा में - ब्यूटिया मोनोस्पर्मा कहते हैं। यह मध्यम आकार का पतझड़ी वृक्ष है, जिसका तना कुछ टेढ़ा-मेड़ा होता है। यह बहुत सूखे क्षेत्रों को छोड़कर 1200 मीटर ऊंचाई तक सम्पूर्ण भारत में पाया जाता है। यह सूखा तथा पाला सहिष्णु है और लवण मृदाओं के सधार के लिए उपयोगी है। फली में सिरे पर केवल एक बीज होता है।
इस पवित्र वृक्ष में ब्रह्मा व सोम (अमृत) का निवास माना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार पार्वती के शाप से ब्रह्मा पलाश बन गये। यज्ञोपवीत के समय इसका दण्ड धारण कराया जाता है। चन्द्र ग्रह की शान्ति में इस वृक्ष की समिधा प्रयुक्त होती है।