मेष राशि

Rashi Description

मेष लग्न का जातक बड़ा उद्यमी, पराक्रमी और साहसी होता है। उसकी अपनी स्वच्छन्द विचारधारा होती है। ऐसा जातक स्वभाव का कुछ कटु और शीघ्र क्रोध करने वाला होता है। ऐसा जातक भले स्वीकार न करे परन्तु दम्भी भी होता है, अत्यधिक स्पष्टवादी होता है और उसे इस बात की अधिक चिन्ता नहीं होती कि उसकी बात किसी को अच्छी लगेगी भी या नहीं। किसी से विवाद करने में उसे देर नहीं लगती, ऐसा जातक आलसी नहीं होता, सदा स्वयं को किसी न किसी कार्य में संलग्न रखता है। मस्तिष्क तीव्र होता है और वह मेधावी और किसी भी बात को सुगमता से समझ लेने वाला होता है। मेष लग्न का जातक प्राय: दुर्बल एवं मध्यम कद का होता है तथा उसकी गर्दन प्रायः लम्बी होती है। उसके बाल कुछ धुंघराले से होते हैं। ऐसे जातक के नेत्रों में एक तीक्ष्णता होती है चेहरा कुछ लम्बा होता है तथा वर्ण में रक्तिम आभा होती है। आंखे गोल होती हैं दांत सुन्दर, सुडौल तथा मजबूत होते हैं। बालों का रंग भूरा होता है। जातक के सिर या चेहरे के किसी भाग में कोई निशान वर्ण या चोट आदि का चिह्न होता है। ऐसे जातक के घुटने कमजोर होते हैं। मेष लग्न का जातक जितना स्पष्टवादी होता है, प्राय: उतना ही सच्चाई को स्वीकार करने वाला तथा सच्चे व्यक्ति का मन से आदर करने वाला होता है। उसका दृष्टिकोण वैज्ञानिक होता है। ऐसे जातक को दूसरों की सलाह अस्वीकार्य होती है, अपना मार्ग स्वयं प्रशस्त करने में रुचि होती है। उसमें योजना की पूर्ण योग्यता होती है। इस लग्न में जन्में वैज्ञानिक किसी भी क्षेत्र में महत्वपूर्ण शोध पूर्ण कार्य करते हैं। उसके स्वभाव में दृढ़ता, जिसे हठ कहना अधिक उपयुक्त होगा, का प्रादुर्भाव होता है किंचित् प्रतिकूल बात पर, या अपनी आलोचना सुनकर बहुत शीघ्र उग्र हो जाता है तथा फिर उसकी सीमायें संयमित नहीं रहतीं। ऐसे जातक के स्वभाव तथा शरीर में उष्णता होती है। जिसका जन्म मेष लग्न में होता है वह प्राया दुर्बळ होता है। इनकी इनकी गर्दन लम्बी होती है। उसके बाल प्रायः धरील और हो। और गोल और ठेहुने दुर्बल होते हैं । स्वभाव का कड़ा, झगड़ालू , कुछ अंन्त । दम्भी, स्पष्ट वक्ता, साहसी, बोर, उद्यमी और सतत किसी न किसी कार्य में संलग्न रहने वाला होता। वह मेधावी भी होता है। कमी कमी उद्धत चित्त का होता है। उसे बाल्यकाल में अनेक हानियों का सामना करना पड़ता है। स्वतन्त्रता-प्रिय और उदार प्रकृति का होता है और ऐसा विश्वास हो जाने पर कि किसी मनुष्य को सहायता की आवश्यकता सचमुच में है तो उसको सहायता देने में प्राणपण से ला जाता है। वह कार्य सम्पन्न करने में निर्भय एवं निःसंकोच होता है। उच्च-पदाभिलाषी तथा सदगण विशिष्ट होता है। उसकी सम्पत्ति स्थिर नहीं रहती। यात्रा-प्रिय होता है और प्राय. अल्पहारी होता है। उसके शरीर के किसी स्थान में व्रणादि के चिन्ह भी होते हैं। यदि किसी कन्या का जन्म मेप काम का हो तो निम्नलिखित विशेष कहा गया है। अर्थात् सच बोलने वाली साफ सुपरा रहना पसंद करने वाली, कठोरचित्त, बदला लेने में तत्पर, कभी कभी कठोर शब्दों का प्रयोग करने वाली, बात की बात में क्रोध करने वाली, कफ प्रकृति और अपने स्वजनों से प्रीति रखने वालो होतो।। मेष लग्न में जिस पुरूष का जन्म होता है उसके लिये सूर्यj सबसे सुखदायी पर है। गुरु भी सुखदायो है, परन्तु सूर्य से कम । साधारण नियमानुसार नवमेश गुरु और दशमेश शनि को आपस में किसी प्रकार का सम्बन्ध होने से राज-योग होता है। परन्तु मेष लग्न वाले के लिये वृ. और श. का सम्बन्ध रहने पर भी राज-योग नहीं होता है। क्योंकि पराशर का मत है कि यदि दशमेश और एकादशेश एकही ग्रह हो तो राज- योग का भङ्ग होता है। अतएव मेष लग्न वाले के लिये वृ. और श. का एक स्थान में रहना किन्चिल अनिष्टकर हो माना गया है। गुरु का दशमस्थ होना भी इस लग्न वाले के लिये अशुभ ही है। कारण, वृ. दशम स्थान में नीच होता है। परन्तु यदि नीच-भङ्ग-राज-योग हो (देखो धारा तो सुखदायी हो सकता है। शनि, बु. और शु. मेष लग्न वाले के लिये पाप होते हैं। श. और बुध प्रायः सारकेश होते हैं। शु. यद्यपि द्वितीयेश एवं सप्तमेश होता है, इस कारण मारकेश कहा जा सकता है, परन्तु प्रायः मृत्युदायक नहीं होता। चं. और वृ., मंगल और र., तथा र. और शु. को, यदि वृ. का दशमस्थ सम्बन्ध हो और उसके साथ दूसरे किसी ग्रह का सम्बन्ध न हो तो राज-योग होता है । मेप लान वाले के लिये मंगल अष्टमेश होने पर भी अनिष्ट कारी नहीं होता । लिखा है कि मेप लान यदि प्रथम नवांश में हो तो अपने प्राकृतिक स्वभाव को विशेष रूप से प्रकट करता चेतावनी। ऐसे जातक को रुचि के अनुसार सोने में कमी नहीं करना चाहिये । अर्थात् शारीरिक और मानसिक विश्राम पर पूर्ण ध्यान देना अनिवार्य है। ऐसे जातक को मस्तिष्क की रक्षा हर प्रकार से करनी चाहिये । साधारण व्यायाम और स्वच्छ वायु का सेवन ऐसे जातक के लिये आवश्यक है। ऐसे जातक अति सक्रीय होते हैं, मंगल उन्हें जीवन के प्रति सक्रीय बनाते हैं | प्रायः ऐसे लोग राष्ट्रीय धावक, खिलाडी (athlete) होते हैं, ऐसा मानिए कोई उन्हें, प्रतिस्पर्था करने के लिए उकसाता हो | ये लोग परिवार का प्रति बहुत संवेदनशील होते हैं | सास्कृतिक होते है, परिवार के इतिहास में उनकी रूचि होती हैं | अपने परिवार को सुरक्षा प्रदान करते हैं | इनकी बार्तालाप भाई बहन से, उनके बहुत ही नजदीकी मित्र से होती रहती हैं | माता से बहुत भावनात्मक जुड़ाव होता है, इनकी माता प्रायः घरेलु महिला होती हैं | वे अपने बच्चों को प्रायः बच्चों के साथ बहुत सक्रीय होते हैं, ये उन्हें नयी नयी बातें सिखाते हैं, जैसे शरीरिक गतिविधियाँ एवं ये उनको आगे बढने के लिए प्रेरित करते हैं | ये बच्चों को प्रतिस्पर्था, खेल आदि के लिए भी जागरूक करते हैं | इनकी पत्नी सुन्दर महिला, जो की अनुशासन वाली डॉक्टर, सर्जन या शारीरिक गतिविधि से जुड़े क्षेत्र से होती हैं | ऐसे लोग, पुलिस, सेना, डॉक्टर, सर्जन, जासूसी, पत्रकारिता में अच्छा कर सकते हैं | ऐसे लोग धार्मिक होते होते हैं और धर्म के प्रति इनका झुकाव होता है | कार्य क्षेत्र में प्रायः इन्हें कुछ अड़चने मिलती रहती है, बहुत मेहनत करके ही ये कार्य क्षेत्र में सफल हो पाते हैं | परन्तु जो ये पाते है, वह बहुत स्थिर होता हैं | वे प्रायः,नेटवर्क मार्केटिंग, सोशल नेटवर्किंग या बड़े भाई, एवं अपने संपर्कों से लाभ को पाते हैं | बहुत सकारात्मक, रचनात्मक स्वप्न या विचार रखते हैं. कल्पना शक्ति से चमक सकते हैं | वे जीवन के हर विभाग में प्रभुत्व रखते हैं, अर्थात अपने अनुसार करना चाहते हैं |

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Computations

मेषलग्न को शुभाशुभ योग :- (१) शुभयोग:-सूर्य पंचम स्थान का अर्थात् त्रिकोण स्थान का प्रावलि होकर यदि स्वगृह में हो तो श्लोक के अनुसार गुम होकर शुभफल देने वाला होता है। (२) शुभयोग:-गुरु नवम (त्रिकोण) स्थान का स्वामी है और वह स्वगृह में हो तो पलोक ६ के अनुसार शुभफल देने वाला होता है। (३) शुभयोग:-चन्द्रमा (विशेषतः क्षीणचन्द्रमा) केन्द्राधिपति होने के कारण से श्लोक ११ के अनुसार (अल्प) कम दूषित होता है और शुभ माना जाता है। वह शुभफल देने वाला होता है। (४) शुभयोग :-मंगल अष्टमस्थान का स्वामी होकर लग्नेश भी होता है । श्लोक के अनुसार उसे शुभ माना जाता है और वह शुभ-फल देता है। (५) अशुभयोग :-शनि दशम स्थान का अधिपति होने से पापग्रह है और एकादश स्थान का भी अधिपति होने से श्लोक ६ के अनुसार अशुभ माना गया है और वह अशुभ फल देने वाला मारक है। (६) अशुभयोग :-बुध तृतीय और षष्ठ स्थान का अधिपति होने से, श्लोक ६ के अनुसार अशुभ माना गया है और वह अशुभफल देने वाला-मारक है (७) अशुभयोग :-शुक्र द्वितीय और सप्तम (मारक-स्थानों का) स्थानों का अधिपति होकर सप्तम केन्द्र का भी अधिपति होता है और श्लोक ७-१० के अनुसार अशुभ है और मृत्युकारक अशुभफल देने वाला है (विशेष करके यदि अन्य पापी- ग्रहों से सम्बन्ध करता हो तो निश्चय ही श्लोक १० के अनुसार मृत्युकारक होता है।) (८) अशुभयोग :-गुरु द्वादश स्थान का अधिपति होकर नवम स्थान (त्रिकोण स्थान) का भी अधिपति है। वह यदि दशम और एका दश स्थान के स्वामी शनि से सहस्थानाधिपत्य योग श्लोक ८ के अनुसार करें तो वह पापग्रह माना जावगाऔर अशुभफल देने वाला होगा। निष्फलयोग :-(१) गुर + शनि; (२) गुर + शुक्र

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