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स्वाति-नक्षत्र
स्वाति अर्थात् शुभ। केवल एक तारे का यह नक्षत्र गहरे नारंगी रंग का है, किन्तु चमक में आसमान के सबसे चमकीले नजर आने वाले तारों में छठे स्थान पर है। काफी उत्तर की ओर ध्रुव तारे के करीब होने से इसका पाश्चात्य नाम आर्कट्यूरस व भारतीय नाम निष्टया (फेंका हुआ) व वैज्ञानिक नाम अल्फा बूतीज है। यह सूर्य से व्यास में 25 गुना अधिक, तापक्रम में कुछ कम तथा 36 प्रकाशवर्ष है।
तारों की संख्या : 1 तारे का वैज्ञानिक नाम अल्फा बोतीज अयनांश 186°40' से 200°00' तक राशि तुला सूर्य का वास 24 अक्तूबर से 7 नवम्बर तक (लगभग)
इस वृक्ष की छाल का सेवन करने से हृदय बहुत शक्तिशाली बन जाता है, इसीलिए वीर अर्जुन के नाम पर इस वृक्ष का नाम अर्जुन पड़ा। तने के लालिमायुक्त होने से इसका अन्य नाम ककुभ है। इस वृक्ष की वैज्ञानिक नाम टर्मिनेलिया अर्जुना है। यह वृक्ष जलमग्न क्षेत्रों या वे क्षेत्र जहाँ भूमि का जलस्तर ऊँचा हो, अधिक वृद्धि करता है। यह सदा हरा रहने वाला विशाल आकार का तथा लटकती शाखाओं वाला वृक्ष है।
काठक संहिता के एक कथानक के अनुसार जब इन्द्र ने वृत्र का वध किया तो उस समय उसका जो रक्त निकला, उससे लाल अर्जुन उत्पन्न हुआ। अर्जुन की सभी उपमाएँ इस वृक्ष के लिए प्रयुक्त होती हैं। सम्भव है, पौराणिक मान्यता में यह वृक्ष अर्जुन से किसी अन्य प्रकार से भी जुड़ा रहा हो। वृक्षायुर्वेद के अनुसार घर के पास अर्जुन लगाना ठीक 71 नहीं है। पौराणिक कथा के अनुसार नारद के शाप से कुबेर के पुत्र नल केरल के योगक्षेम पंचांग में स्वाति नक्षत्र के लिए नीरमरूत (जरूल व कूबर जुड़वा अर्जुन वृक्ष यमलार्जुन बन गये थे, जो कृष्ण के उखलल बन्धन लीला में उखड़कर वृक्ष-योनि से मुक्ति पाये थे।