कन्या राशि

Rashi Description

कन्या लग्न एक द्विस्वभाव लग्न है तथा उसका स्वामी बुध है। इस लग्न की प्रकृति सौम्य है और राशि स्त्री है। यह एक मात्र ऐसी राशि है, जिसका स्वामी बुध इसी राशि के 15 पर परमोच्च होता है तथा बुध का मूल त्रिकोण भी इसी राशि के 16 से 20 तक होता है। यह शीर्षोदय राशि है तथा दक्षिण दिशा पर इसका अधिकार है। यह राशि पेट के रोगादि तथा अनियमितताओं से सम्बन्धित है। इसका स्वामी बुध दशमेश भी होता है और बहुत शुभ फल प्रदाता होता है। बुध लग्न तथा दशम भाव में अति शुभ फल प्रदान करता है। मंगल और शनि के प्रभाव में लग्न और बुध हों तो अशुभ होता है। कन्या लग्न में जन्म लेने वाले जातक की बुद्धि प्रखर होती है, विद्याध्ययन में वास्तविक रुचि होती है, वे बहुत जल्दी बातों से प्रभावित हो जाते हैं तथा प्रायः उनमें उतावलापन भी होता है। ऐसे जातकों को अपने ऊपर पूर्ण विश्वास नहीं होता। किसी भी कार्य को प्रणाली बद्ध ढंग से करते हैं। गणित तथा किसी भी बात के छिद्रान्वेषण में रुचि होती है। कन्या लग्न में जन्म लेने वाले लोग प्राय: मंझोले कद के होते हैं। उनके गाल भरे हुए होते हैं तथा उनके स्वभाव में स्त्रीवर्गीय स्वभाव की झलक टपकती है। उनके बाहु और कन्धे छोटे-छोटे होते हैं। किसी कार्य को कब करना चाहिये, इसे वह जातक जानता है। वह सत्यवादी, न्यायप्रिय, दयालु, धैर्यवान्, और स्नेही होता है तथा उसकी बुद्धि सुन्दर होती है। कन्या लग्न का जातक किसी दूसरे के सुख दु:ख की उपेक्षा नहीं करता, उसे दूसरे से काम लेने में भी हिचकिचाहट नहीं होती। वह बिना विचारे कुछ नहीं करता। उसको दूसरों के कार्यों में गहराई तक जाने में रुचि होती है। ऐसा जातक वाणिज्य, व्यवसाय में बड़ा निपुण होता है। विचारवान् तथा मितव्ययी होता है। भले ही बहुत साहसी न हो, परन्तु धैर्यवान् अवश्य होता है। उस पर श्रेयस्कर लोगों की कृपा होती है। कन्या लग्न के जातकों का बुद्धि कौशल उनकी कम अवस्था में ही दिखायी देने लगता है। वे बहुत भावुक होते हैं परन्तु बुद्धू नहीं होते हैं। चतुरता पूर्वक अपना काम निकाल लेते हैं। किसी से लड़ने में विश्वास नहीं रखते। दूसरों पर उनका बहुत प्रभाव होता है। ऐसे जातक को स्नायु यंत्र की व्याधियाँ या लकवे जैसी बीमारी होना संभव होता है। कन्या लग्न के लिये बुध तो शुभ होता ही है परन्तु शुक्र भी द्वितीयेश व नवमेश होने के कारण अति शुभ फल प्रदाता होता है। मंगल, बृहस्पति अशुभ होते हैं। शनि भी कुछ विशेष स्थितियों में ही शुभ फल देता है। लग्न या लग्नेश पर मंगल अथवा शनि का प्रभाव पड़ रहा हो तो बड़ा अनिष्ट होता है। मंगल तृतीयेश तथा अष्टमेश होने के कारण [अपने आप में अशुभता समेटे रहता है यदि वहीं बुध अथवा लग्न को प्रभावित करे तो उल्लेखनीय है कि मंगल, बुध शत्रुवत् हैं। ऐसी स्थिति में बुद्धि सम्बन्धी या नर्वस सिस्टम से सम्बन्धित या फिर त्वचा सम्बन्धी विकार होता है। बुध चन्द्रमा मंगल लग्नगत हों तो सफेद दाग या कोढ़ तक हो सकता है। बुध मंगल की युति पंचम भाव में मानसिक विकार देने वाली होती है। शुक्र सर्वश्रेष्ठ फल प्रदान करता है तथा बुध और शुक्र की युति राजयोग कारक होती है। यदि दशम में बुध शुक्र संयुक्त हों तो प्रथम श्रेणी के राजकीय प्रशासनात्मक सेवा करने वाला होता है। बुध तथा शुक्र का योग यदि पापाक्रान्त न हो तो दशम और लग्न के अतिरिक्त सप्तम और एकादश भाव में भी श्रेष्ठ फल प्रदान करता है। जिसका कन्या लग्न होता है, उसके मुख की कान्ति से स्त्रीवर्गीय स्वभाव का झलक टपकता है। उसके बाहु और कंधे छोटे-छोटे होते हैं। किस कार्य को कम करना चाहिये, उसको, ऐसा जातक विशेष रूप से जानता है। जातक सत्यवादी तथा न्यायप्रिय, दयालु, धैवान और स्नेही होता है। उसकी बुद्धि सुंदर होती है। परन्तु व्यवहार में किसी दूसरे के सुख दुःख की उपेक्षा नहीं करता है। दूसरे से काम लेने में जरा भी हिचकिचाहट नहीं रखता । कार्य करने में बड़ा सावधान और चौकस होता है। बिना विचार कुछ भी नहीं करता । उसको दूसरे के कामों में छिद्रान्वेषण करने की बड़ी रूचि रहती है। बातों को गुप्त रखने वाला और अपने भाव को दूसरों पर प्रकट नहीं करने वाला तथा वाणिज्य व्यवसाय में बड़ा निपुण होता है। कार्य करने में विचारवान और तरीका वाला होता है । वह मितव्ययी, सहनशील और बड़ा ही दयालु होता है। वह काम करने में दक्ष, धीर और साहसी होता है। ऐसे जातक पर उससे अच्छे लोगों की सहायता और संरक्षता होती है। ऐसा जातक अन्य लोगों के पदार्थ और धन का भोगने वाला होता है। परन्तु ऐसा जातक कभी कभी स्त्री-बिलास- रसिक और इन्द्रिय-लोलुप और विद्वान् लोगों से प्रेम करने वाला होता है। कन्या होने से कुछ विशेष गुण दोषः बुद्धिमती, सुशीला, मिलनसार, उदार, धार्मिक और दानशीला होती है। कन्या लग्न वाले के लिये शु. और बु. शुभदायी होते हैं। शुभदायित्व में बुध से शुक्र ही उत्तम होता है । बुध और शुक्र में सम्बन्ध रहने से उत्तम राज-योग होता है । शनि थोड़े अंश में शुभ-फल देता है । चं. केतु के साथ होकर लग्नगत होने से उत्तम फल देता है । परन्तु मारकेश होता है । सूर्य को स्वयं मारकत्व नहीं होता है । परन्तु वृ., चं., मंगल उत्तम फल नहीं देते । मंगल, चंद्र एवं गुरु सहायक (कारक) होते हैं, शुक्र कभी कभी मारकेश हो जाता है । नवमें नवांश में रहने से प्रकृतिक स्वभाव का पूर्ण विकास होता है । ऐसे जातक अपनी मानसिक अवस्थाओं पर पूर्ण ध्यान रखना चाहिए। प्रायः पेट जनित रोग दुःखकायी होते हैं । अतएव भोजन का प्रबंध उत्तम होना चाहिए । सांसारिक बातों में उपद्रव होने से ऐसे जातक के स्वास्थ्य पर प्रायः बुरा असर होता है । कन्या लग्न में जन्मे जातक अपने शरीर को लेकर बहुत विचारवान होते होते हैं - जैसे की बेठने से पहले स्थान को देखना, मोटा होना या पतला होना हर पहलू पर उनका ध्यान होता है | बहुत ही साफ़ सफाई प्रिय, उनके प्रयोग की वस्तुएं, प्रायः बहुत साफ़ होती हैं | वे अपना भोजन या सामन, किसी के साथ साझा करना पसंद नहीं करते | धन के संतुलन में अधिक शक्ति लगाते हैं | उनके भाई-बहन अधिक दूरी पर नहीं रहते हैं, वृश्चिक राशि वाले लोगों से इनको विशेष लगाव हो सकता है | लेखन सुन्दर होता हैं, ये लेखक भी होते हैं | परिवार में माहौल दार्शनिक होता हैं, माता आपके जीवन में अपने अनुभव रीति रिवाज को स्थान देना चाहती हैं | जीवन के अंत में ये माता से बहुत जुड़ जाते हैं | ये लोग अध्ययन को कर्तव्य की तरह करते हैं | बच्चों का लालन पोषण भी कर्तव्य हैं - धीमें धीमे परन्तु अपनी जिम्मेदारी से नहीं हटते | प्रायः कमजोर होते हैं, शत्रुओं से बचना ही चाहते हैं | इनको अपनी पत्नी कुशाग्र बुद्धि की चाहिए, उनकी पत्नी बौद्धिक क्षमतावान होती भी हैं | ये प्राण वायु से परिपूर्ण होते हैं | वे धन को परिवार के लिए खर्च करते है, परन्तु अपना हिसाब अलग रखते हैं | वे धर्म के पति स्थिर नहीं होते, उनको दुसरे धर्म के लोगों में रूचि होती है, इनके लिए धर्म परिवर्तन आसान होता है | वे व्यवसाय से लेखक, वक्ता, अध्यापक, पत्रकार, सेल्समेन, व्यापारी होते हैं - बिज़नस में किस क्लाइंट से कैसे डील करना हैं उनको पता होता हैं | वे प्रायः बदलाव करते रहना उनको प्रिय होता है | इनके लिए मित्र आदि परिवार से अधिक अपने होते हैं, माता सामाजिक महिला होती हैं - उनका लोगों से मिलना जुलना होता हैं | उनका अहंकार उनका अध्यात्मिक ज्ञान दबा देती है | परन्तु अध्यात्मिक दिखना चाहते है, जबकि अहंकारी होते हैं |

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Computations

कन्या के लिए शुभाशुभ योगः- (१) शुभयोगः-शुक्र नवम स्थान का स्वामी होने से प्रलोक ६ के शुभ होकर शुभफल देनेवाला होता है (वह द्वितीय मारक स्थान का स्वामी होने से अशुभफल देनेवाला होता है) यह मध्य-योग है। (२) शुभयोगः-लग्नाधिपति बुध और द्वितीय स्थान का स्वामी शुक्र और नवम स्थानाधिप शुक्र और दशमस्थानाधिप बुध इन दोनों के सह स्थान और साहचर्य योगों के कारण (सामान्य केन्द्राधिपत्य दोष होते हुए भी) राजयोगकारक होने से शुभफलदायक है। (३) अशुभयोगः-मंगल स्वयं पापग्रह होकर श्लोक ६ के अनुसार तृतीय और अष्टम स्थानों का स्वामी होने से अशुभ है और अशुभफल देनेवाला होता है । (४) अशुभयोगः-गुरु चतुर्थ और सप्तम केन्द्रों का स्वामी होने से श्लोक ७ और १० के अनुसार बलवान् केन्द्राधिपतित्व दोष के कारण और सप्तम-मारक स्थान का भी स्वामी होने से अशुभ होकर अशुभफल देनेवाला होता है। (५) अशुभयोग:-चन्द्रमा एकादश स्थान का अधिपति होकर श्लोक ६ के अनुसार अशुभ होकर अशुभफल देनेवाला होता है । (६) अशुभयोगः-शनि पंचम (त्रिकोण) स्थान का स्वामी होकर स्वयं पापग्रह है और षष्ठ स्थान का स्वामी होने से श्लोक ६ के अनुसार अशुभफल देनेवाला होता है । निष्फल योगः-(१) गुरु + शुक्र; (२) गुरु + शनि (दोनों ही ग्रह दूषित होते हैं। सफल योग :-(२) बुध + शुक्र; (२) बुध + शनि ( सदोष), शनि दूषित होने से सदोष राजयोग है परन्तु श्लोक १५ के अनुसार एक ही ग्रह दूषित हो तो राजयोग में बाधा नहीं पहुँचती।

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