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धनिष्ठा नक्षत्र
धनिष्ठा अर्थात् सर्वाधिक धनी। वैदिक साहित्य में इसे श्रविष्ठा (सर्वाधिक प्रसिद्ध) भी कहा गया है। यह नक्षत्र मंदप्रकाश के पाँच तारों का एक समूह है, जो आकाश के डॉल्फिन तारामण्डल में स्थित है। इस तारामण्डल को भारत में शिशुमार या शिंशुमार (समुद्री प्राणी) के रूप में जाना जाता है। इस नक्षत्र के पाँच तारों के पाश्चात्य नाम अल्फा, बीटा, गामा, डेल्टा व जीटा डेल्फाइनस (Delphinus) हैं। सितम्बर माह में यह नक्षत्र रात्रि को सबसे अधिक समय (अर्थात् सूर्यास्त से सूर्योदय तक) दिखायी देता है। उन दिनों खरीफ फसलें अनाज से लद जाती थीं, सम्भवतः इसीलिए इस नक्षत्र का नाम धनिष्ठा पड़ा।
तारों की संख्या 5 तारे का वैज्ञानिक नाम डॉल्फिन मंडल के अल्फा, बीटा, गामा, डेल्टा व जीटा तारे अयनांश 293°20' से 306°40' तक राशि सूर्य का वास 6 फरवरी से 19 फरवरी तक (लगभग)
इसे संस्कृत में शमी (पाप और दुर्भाग्य का शमन करने वाली), सक्तुफला, केशहन्त्री, लक्ष्मी, शिवा, पापनाशिनी, अग्निगर्भा कहते हैं। हिन्दी में इसे छ्योंकर (उ.प्र.), खेजड़ी (राज.), जन्ड (पंजाब) तथा वैज्ञानिक भाषा में प्रोसोपिस सिनरेरिया कहते हैं। यह सूखे व गर्म क्षेत्र में उगने वाला कम ऊँचाई का वृक्ष है। पत्ती में एक से दो जोड़ी पंख होती है और हर पंख में सात से दस जोड़ी पत्रक होते हैं। पत्रकों की लम्बाई 10 से 16 मिमी होती है तथा चौड़ाई 3 से 4.5 मिमी होती है। शाखाओं पर छोटे-छोटे 3 से 6 मिमी लम्बे काँटे होते हैं। इसमें दिसम्बर से अप्रैल तक फूल आते हैं तथा फल मार्च से जून तक आते हैं।
यह राजस्थान का राज्य-वृक्ष है। शनि ग्रह की शान्ति-हेतु हवन-यत्र में शमी की लकड़ी प्रयुक्त होती है। इस वृक्ष में 'देवी' का निवास माना जाता है। विजय की कामना करने वाले विजयदशमी के दिन इस वृक्ष की पूजा करते हैं। शमी काष्ठ में पीपल काष्ठ के रगण-मंथन से यज्ञ की अमि उत्पन्न की जाती है। शमी काष्ट में अग्नि के छिपे होने की पौराणिक मान्यता है। इसकी लकड़ी जलावन की दृष्टि से अति श्रेष्ठ होने से वुडेन एन्नेसाइट कही जाती है।