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मघा-नक्षत्र
मघा अर्थात् धन। सिंह राशि के 'सिंह मुख' की ओर छह तारों का समूह जो हंसिये जैसी आकृति बनाता है, मघा नक्षत्र कहलाता है। माघ महीने का नाम इसी नक्षत्र पर आधारित है। इस नक्षत्र का मुख्य तारा अल्फा सिह (रैगुलस) नीले-सफेद रंग का है तथा समूचे आसमान में जो सबसे चमकीले तारे हैं, उनमें इसका स्थान बीसवाँ है। इस नक्षत्र का एक अन्य नाम अनघा है, जिसका अर्थ है पाप-रहित । इस नक्षत्र के जीटा सिंह तारे के समीप एक बिन्दु से नवम्बर के मध्य में उल्काओं की बौछार होती दिखायी है, जो हर 33-34 साल बाद महत्तम होती है, 1965 के बाद इस वर्ष 1998 नवम्बर में यह उल्का बौछार फिर हुई।
तारों की संख्या 6 तारे का वैज्ञानिक नाम सिंह मण्डल के अल्फा, एटा, गामा, जेटा, म्यू व एप्सिलोन तारे अयनांश 120°00' से 133°20' तक राशि सूर्य का वास 17अगस्त से 30 अगस्त तक (लगभग)
बरगद को संस्कृत में वट (लपेटने वाला, घेरने वाला) न्यग्रोध (लपेटते हुए बढ़ने वाला) बहुपाद, रक्तफल, रोहिण, यक्षावास कहते हैं तथा अंग्रेजी भाषा में इसे बैनियन ट्री (बनियों का वृक्ष) व वैज्ञानिक भाषा में फाइकस बेन्गालेन्सिस कहते हैं। यह सदाहरित विशालकाय छायावृक्ष है, जो पूरे भारत में पाया जाता है। इसकी शाखाओं से जड़ें लटककर निकलती हैं, जो जमीन में जाने के बाद अपनी शाखा को अपने माध्यम से पोषण व आधार प्रदान करने लगती हैं।
धार्मिक कथा सुनने के लिए इस वृक्ष की छाया उत्तम मानी गयी है। इस वृक्ष में भगवान् शंकर का निवास माना जाता है। वटवृक्ष के विस्तार करने की अदम्य क्षमता व अक्षयकाल तक जीवित रह सकने की सम्भावना, इसे इन गुणों को पाने के लिए पूज्य बनाती है। सीता जीने वनवास की यात्रा में इसी कामना से इस वृक्ष की पूजा की थी।