कर्क राशि

Rashi Description

जलीय लग्न कर्क का अधिपति चन्द्र है। यह लग्न स्त्री राशि समन, पर प्रकृति और उत्तर दिशा की परिचारिका है। इस लान का समय नित्य 2 घण्टे 10 मिनट होता है। इस राशि में बृहस्पति उच्य और मंगल नीच राशि का फल प्रदान करता है। इसके अन्तर्गत 5 पर बृहस्पति उच्चतम और 28 पर मंगल नीचतम होता है। कर्क राशिगत सूर्य, मंगल तथा वृहस्पति मित्रवत् आचरण करते हैं, किन्तु शुक, बुध एवं शनि शत्रुवत् व्यवहार करते हैं। कर्क लग्नोत्पन्न जातक की शारीरिक ऊंचाई मध्यम होती है। गर्दन मोटी, चेहरा गोलाकार और गाल भरे हुए होते हैं। वर्ण गोरा अथवा किंचित् पीताम एवं आंखें भूरी अथवा किचित् नीले रंग की होती हैं। यक्ष प्रशस्त और पुष्ट होता है। हाथ-पैर और शरीर के अधोभाग अपेक्षाकृत स्थूल तथा परिपुष्ट होते हैं। ऐसे जातक को शारीरिक स्थूलता के प्रति प्रारम्भ से ही सावधान रहना चाहिये। जातक की नासिका थोड़ी दबी हुई होती है। प्रगल्भ भावुकता, अपार जिज्ञासा, आनन्दोपभोगी विलासिता, व्यवहार कुशलता, भीरुता और वैचारिक अस्थिरता कर्क लग्नोत्पन्न जातक की मनस्तात्विक संरचना हैं। आकर्षक, अभिराम और आनन्ददायी वस्तुओं के प्रति रुचि, रजत-स्वर्ण आभूषणों के निरन्तर संग्रह की इच्छा एवं उत्तमोत्तम वस्त्र धारण की प्रवृत्ति होती है। कायिक, मानसिक और आत्मिक स्वच्छता की अनवरत चेष्टा रहती है। ऐसा जातक मधुर कण्ठ-स्वर सम्पन्न होता है। कटु-कठोर कथन उसे अप्रिय होते हैं। जीवनचर्या में प्रदर्शन की प्रचुर प्रवृत्ति होती है। समृद्धि, समृद्ध जीवन में आडम्बर का अंश अपेक्षाकृत अधिक होता है। जातक कर्तव्यों के प्रति निष्ठावान् और पूज्यजनों एवं गुरुजनों के प्रति श्रद्धावान् होता है। कर्क लग्नोत्पन्न जातक विपरीत योनि के प्रति सहज आकर्षण अनुभव करता है। चित्त अत्यन्त चंचल होता है। प्रायः सिद्धान्त अथवा आदर्श से विचलन होता रहता है। विपरीत स्थितियों में आचरण की गरिमा और प्रामाणिकता खण्डित होती है। स्त्री सहवास में सामर्थ्य और रुचि परिवर्द्धित रहती है। मिष्ठान्न प्रिय होता है। सम्बन्धों और मित्रों के प्रति स्नेहमिश्रित उदारता होती है। सम्माननीयों और स्नेहास्पदों के प्रति अगाध निष्ठा होती है। जिनके प्रति जातक श्रद्धा अथवा स्नेह-सम्मान भाव नहीं रखता, उनकी स्वीकार्य बातों को भी जातक तिरस्कृत करता है। ऐसे व्यक्तियों पर अविश्वास करते हुए उनके संग से भी जातक वितृष्णा करता है। समर्पित भाव से प्रवृत्त होने पर कोई भी कार्य सफलतापूर्वक सम्पन्न करते हुए भी जातक प्रायः प्रवासी ही रहता है। बुद्धि प्रखर और प्रवृत्ति अति मितव्ययी होती है। चित्तवृत्ति अस्थिर किन्तु किंचित् मात्रा में अन्तर्दृष्टि को कृपा रहती है। वह अपने परिवार से अगाध प्रेम करता है। प्रेम के क्षेत्र में निराशा उसकी उपलब्धि होती है। जातक वाचाल, अति आत्मविश्वासी, दुर्दमनीय, सत्यप्रिय, न्यायनिष्ठ, कार्यकुशल और परिवर्तनशील प्रकृति वाले कार्यों में दक्ष होता है। ऐसे कार्यों में उसे पर्याप्त लाभ भी होता है। अत्यधिक सन्तति मोह के कारण उसका दाम्पत्य जीवन असन्तुलित होता है। इस लग्न के लिए मंगल ग्रह सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण एवं योगकारक होता है, क्योंकि पंचमेश और दशमेश होने के कारण योगकारक स्थिति मंगत को प्राप्त रहती है। मंगल जिस भाव में स्थित हो, उसके गुणों को परिवर्द्धित करता है। पंचमस्थ अथवा दशमस्थ मंगल राजयोग और श्रेष्ठ फल प्रदाता होता है। कर्क लग्नोत्पन्न जातक, न लम्बा न नाटा अर्थात् मझोला कद (ऊँचाई) का होता है । उसकी गर्दन मोटी, मुख गोल और शरीर स्थूल अर्थात् मोटा होता है। वह स्वभाव का मिलनसार, आनन्द और विकास-प्रिय, सुन्दर का चाहने वाला, साफ सुथरा रहने वाला, सत्य-प्रिय, उत्तम भोजन का वस्तुओं चाहने वाला, भूषणादि में प्रेम रखनेवाका, मधुर स्वर का, अमन-शील, प्रायः प्रभावशाली, तथा यशस्वी होता है। उसका रहन सहन आडम्बर युक्तर्यात हाट-बाट का होता है। वह कर्तव्य परायण, श्रेष्ठजन अर्यात गुरु तथा धार्मिक पुरुषों के प्रति भक्तिमान् होता है। धार्मिकहोते हुए भी कपटी होने की रुचि रखता और सिद्धान्त रहित पुरुष होता है । स्त्री सहवास में समर्थ तथा मिष्टान्न-प्रिय होता है। उसको अपने सगे सम्बन्चियों के प्रति सद्भाव होता है । परन्तु ऐसे जातक का प्रेम और विरोध की धारणा उद्धत प्रकार की होती है । ऐसा जातक जिसको चाहता है, उसी की बात को स्वीकर करता है और मानता है। जिसकी बात उसको नहीं भाती है उसकी बात का अनुसरण नहीं करता है और उसके परामर्श को घृणा की दृष्टि से देखता है, उसपर अविश्वास करता है। केवल इतनाही नहीं किन्तु उसकी संगति का भी परित्याग करता है। ऐसा जातक हर विषय की उपयोगिता और मोल का अनुमान उचित रोति से कर सकता है और उसको सफलता पूर्वक व्यवहार करने का में प्रायः ढङ्ग भी जानता है। ऐसा जातक प्रायः प्रवासी रहता है, परन्तु गृह रहने का इच्छुक होता है। कन्या होने से कुछ विशेष गुण दोषः-सुन्दरी, शीलवती, विश्वसनीय, शान्तिमयी, प्रभावशालिनी, अपने स्वजनों से प्रेम करने वाली और सुखमयी तथा बहु सन्तान वाली होती है। ऐसे जातक के लिये मंगल सबसे उत्तम फल देने वाला ग्रह होता है। मंगल, दशमेश और पञ्चमेश होने के कारण यदि पञ्चमस्थ अथवा दशमस्थ हो तो बहुत हो उत्तम फल देने वाला तथा राज-योग कारक होता है। मंगल के बाद वृ. उत्तम फल देने वाला होता है। वृ. का लाभस्थ अथवा नवमस्थ होना बहुत ही सुखदायी है। वृ. और मंगल में सम्बन्ध होने से उत्तम राज-योग देता है। शु., श. और बुध ऐसे जातक के लिये अनिष्टकारी होते हैं। र. मारक स्थान का स्वामी होता हुआ भी प्रायः मृत्युकारी नहीं होता है। बुध, शुक्र और शनि के मारकत्व प्राप्त होने पर मारकेश का बल होता है। चं. लग्नेश होने के कारण प्रायः शुभ होता है। वृ. और चं. का लग्न में रहना शुभ-प्रद है। प्रथम नवांश अर्थात् एक अंश से ३.३३ अंश तक का लग्न होने से प्राकृतिक स्वभाव को पूर्णरूप से दिखाता है। चेतावनी। ऐसे जातक को औषधि का सेवन बहुत कम और सोच विचार कर करना चाहिये। ठंढक और सर्दी से अपने को सर्वदा बचाना चाहिये । भोजन शुद्ध और खूब सिद्ध अन्न खाना चाहिए । ऐसे जातक को पेट का रोग अर्थात् पाकस्थली के बिगड़ने से प्रायः रोग-भय होता है। इस कारण गुरु पदार्थों के भोजन से सर्वदा बचना चाहिये । चित्त की शान्ति रखने से भी पाचन-शक्ति की रक्षा होती है। रोगी होने पर स्थान का परिवर्तन और समुद्र-निकटवर्ती स्थान शुभ-दायी होता है। ऐसा जातक किञ्चित् मात्र रोगी होने पर अथवा बिना रोग ही के प्रायः अपने को रोग-ग्रस्त समझता है। राजनीतिज्ञ, एक्टिंग या मनोरंजन, अथवा स्वास्थ्य विषय से सम्बंधित लोग (medical field), संवेदनशील, अपने परिवार अथवा अपने प्रियजन का रक्षण करने वाले, इनके लिए परिवार का स्थान बहुत विशेष होता है | उनकी, आत्मा ही परिवार है, स्पर्श पारिवारिक जन | इन लोगों पर पिता का विशेष प्रभाव होता है, ये कहते हैं , पिता का नाम और आगे बड़े, यदि पिता ने ऐसा किया, तो यह भी वही करना चाहते हैं | सरकारी विभाग से इनका सम्बन्ध अवश्य संभव है | यह निकट भाई बहन, के साथ उतना ही जुड़ना चाहते हैं, जितना इनको उनसे मिले | अर्थात, अदि वे प्रेम करते है, तो ये भी उतना ही करेंगे | इर्षालू, बच्चों के प्रति विशेष सुरक्षा का भाव, वे अपने बच्चों को मज़बूत बनाना चाहता हैं, जबकि लालन पोषण के विषय में उनको किसी के दिशानिर्देश भी पसंद नहीं | इनके अधिक शत्रु नहीं होते हैं, वे अपने प्रयास से ही शत्रु को जीत लेते हैं | सामान्यतः शादी में देरी संभव है, 30 वर्ष की आयु के बाद ही प्रायः होती है | प्रायः शादी में धन लाभ होगा, या कहें लाभ के कारण ही विवाह | इनकी पत्नी एक अनुभवी महिला होंगी | आयु अच्छी होती है, तरक्की धीरे धीरे होती है, लग्भव 30 की उम्र के निकट ही सफलता मिलती है | ये धार्मिक होते है, ये स्वयं को धर्माचरण के अनुकूल बना सकते हैं | ये कार्य को लेकर बहुत कोमल स्वभाव के न हो, आक्रामक स्वभाव के होते हैं | ये मनोरंजन, दवाइयों अथवा डॉक्टर सम्बन्धी क्षेत्र में अच्छा कार्य करते है | पुरुषों के महिला मित्र अधिक होते हैं, उनके जीवन में लाभ सम्बन्धी कभी कभी, उतार चड़ाव होते हैं, अन्यथा सामान्य ही रहता है | इन्हें कार्य की शीग्रता को त्यागना चाहिए, ये रचनामक होते है, जीवन में अधिक संघर्ष नहीं करना पड़ता हैं | शयन सुख इनके जीवन में अधिक होता हैं |

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Computations

कर्क लग्न के लिए शुभाशुभ योगः (१) शुभयोग :--मंगल पंचम (त्रिकोण ) स्थान का अधिपति होने से लोगा ६ के अनुसार और दशम (केन्द्र) स्थान का अधिपति होने से प्रलोक ७ अनुसार शुभ माना गया है। इलांक १२के अनुसार त्रिकोण-केन्द्रपतित्व योग के कारण विशेष गुम और अशुभ देने वाला राजयोगकारक होता है। (२) शुभयोग:-गुरु यह शुभ ग्रह होकर नवम-त्रिकोण स्थान का अधिपति होने से शुभफल देने वाला होता है। (३) अशुभयोग:-शुक चतुर्थ केन्द्र का स्वामी होने से श्लोक ७ के अनुसार, तथा श्लोक १० के अनुसार दूषित होता है और वह एकादश स्थान का स्वामी होने से श्लोक ६ के अनुसार, अशुभ होता है और अशुभफल देने वाला होता है। (४) अशुभयोग :-बुध तृतीय स्थान का स्वामी होकर श्लोक ६ के अनुसार अशुभ होता है और वह द्वादश स्थान का स्वामी होने से भी अशुभ है और अशभफल देने वाला है। (५) अशुभयोग :--शनि सप्तम स्थान और अष्टम स्थान का अधिपति होकर स्वयं पापग्रह है और पापी होने से अशुभफल देने वाला होता है।

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