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मूल अर्थात् जड़। इस नक्षत्र के प्रारम्भिक प्राचीन नाम है (उखाड़ने वाली) व विन्तो (दो मुक्त करने वाले)।
यह नक्षत्र वृश्चिक मण्डल की पूंछ पर स्थित है, जिसमें सामान्यतया पंछ पर स्थित सभी मुख्य म्यारह तारे माने जाते हैं, किन्तु विशिष्ट तौर पर पूंछ की ईक पर स्थित दो तारों लम्बढा व उप्सिलोन वृश्चिक को ही मूल नक्षत्र माना जाता है।
तारों की संख्या : 2 तारे का वैज्ञानिक नाम : वृश्चिक मण्डल के लम्बडा व उप्सिलोन तारे अयनांश : 240°00' से 253°20' तक राशि : धनु सूर्य का वास : 16 दिसम्बर से 29 दिसम्बर तक (लगभग)
सर्ज अर्थात् सृजन करने वाला, वृक्ष के तने से अधिक मात्रा में गोंद निकलने के कारण अथवा बहुत अधिक वृद्धि करने के कारण इसे सर्ज कहा गया। सर्ज शब्द से दो वृक्ष साल वकहरुआ स्वीकार किये जाते हैं। उत्तर प्रदेश में साल होता है. अतः यहाँ सर्ज से साल वृक्ष स्वीकार करने की परम्परा रही है। वैज्ञानिक भाषा में इसे शोरिया रोबस्टा कहते हैं।
काष्ठ-उत्पादन के साथ-साथ पर्यावरण-संरक्षण की दृष्टि से यह वृक्ष अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है। इसके बीज में 19-20% तेल निकलता है, जिसे साल बटर कहते हैं, जो खाने योग्य होता है। इस वृक्ष से निकलने वाला स्राव सूखकर ठोस हो जाता है, जिसे राल, लालधुना या धूपक कहते हैं, जो धूनी में जलाया जाता है, हवन-सामग्री में मिलाया जाता है तथा चर्म रोगों का मलहम बनाने में प्रयुक्त होता है।