वृशक राशि

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Rashi Description

वृश्चिक लग्न का स्वामी मंगल होता है। इस लग्न का समय 2 घंटा 24 मिनट होता है। यह स्थिर लग्न है तथा स्त्री राशि है। यह लग्न उत्तर दिशा की परिचायक है तथा इसका रंग भूरा है। इस राशि में कोई भी ग्रह उच्च का नहीं होता परन्तु चन्द्रमा यहां नीचस्थ अवश्य होता है। मंगल के गुणों से पूर्ण वृश्चिक लग्न एक मात्र ऐसी लग्न है जहां कोई ग्रह नीच का भले ही हो परन्तु कोई भी ग्रह उच्च का नहीं होता है। सूर्य, बृहस्पति एवं चन्द्रमा यहां मित्रवत् होते हैं। बुध, शुक्र एवं शनि शत्रुवत् फल देते हैं। वृश्चिक लग्न प्रायः रहस्यात्मक मानी जाती है। वृश्चिक लग्न के जातका का व्यक्तित्व भव्य होता है। उसका रूप सुन्दर होता है। उसके पैर और जाप गोल पुष्ट तथा सुडौल होते हैं। चेहरा कुछ चौड़ापन लिये हुए और कुछ चौकोर सी आपति लिये हुए होता है। बालों में हल्का घुँघरालापन होता है। बाल विल्कल काले न होकर हल्का सा भूरापन लिये हुए, होते हैं। ललाट चौड़ा होता है। अगर वर्गात्तम नवांश में लग्न पड़े तो लम्बाई अघिक नहीं होती। लग्न पर शनि या मंगल की पुष्टि हो अथवा इनमें से कोई भी एक ग्रह लग्न में संस्थित हो तो गले से लेकर सिर कोई चोट लगती है या किसी कारणवश पाव का निशान होता है। वृश्चिक राशि जलीय होने के कारण, इस लग्न में जन्मा बालक शायद ही कभी क्षीणकाय हो, वह प्राय: गठीले बदन का होता है। कुल मिलाकर वृश्चिक लग्न के जातक का शारीरिक व्यक्तित्व अन्य व्यक्तियों से भिन्न और पर्याप्त प्रभावशाली होता है। वृश्चिक लग्न में उत्पन्न हुआ जातक बहुत सतर्क होकर कार्य करता है। बाद-विवाद में पक्ष तथा विपक्ष की चिन्ता नहीं करता। जातक विनोदप्रिय होने के उपरान्त भी विवादी प्रकृति का होता है। झगड़ा होने पर अपनी हानि की परवाह नहीं करता अपितु योजनाबद्ध रूप से झगड़े में जुट जाता है। उसे अपनी आलोचना असहनीय होती है किसी बात का नकारात्मक उत्तर उसे बुरा लगता है। अपने वक्तव्य को स्वीकार कराने के लिये तर्क वितर्क करता है। ऐसे जातक को क्रोध बहुत शीघ्र आता है। क्रोध पर नियन्त्रण सरल नहीं होता। स्पष्टवादी होने के उपरान्त भी जातक का स्वभाव बहुत जटिल और मायावी होता है। यदि ऐसे जातक को ज्ञात भी हो कि वह जो कार्य करने जा रहा है, उसमें विवाद की स्थितियां संभव हैं। तब भी उस कार्य को कर डालता है। ऐसा व्यक्ति काना को काना कहने में न तो संकोच करता है और न ही उसके परिणाम से भयभीत होता है। जातक सत्य भाषण स्पष्टता पूर्वक करता है। अपने उचित अथवा अनुचित उद्देश्य को पूर्ण करने के लिये अथक परिश्रम करता है। ऐसे जातक का विरोध करना, अकारण ही उसे क्रोधित करना सिद्ध होता है। एक उल्लेखनीय तथ्य यह है कि वह अपने महत्व के प्रति अत्यन्त सचेत होता है। यदि उसका विरोध, कोई अति स्नेही, परम मित्र, निकटतम कुटुम्बी यहां तक कि प्राणप्रिया प्रेमिका अथवा पत्नी भी करे, तो उसके साथ भी कटुतापूर्ण व्यवहार करता है और प्राय: उससे संघर्ष भी कर लेता है। ऐसा जातक प्राय: उच्च कक्षा का व्यक्ति होता है और अन्य सम्बद्ध व्यक्तियों से उसकी छवि भिन्न होती है। वृश्चिक लग्न वाला जातक जटिल प्रकृति का ऐसा प्राणी होता है कि जिसके विरुद्ध विचार प्रकट करने वाला, उसे शत्रुवत् दिखाई देता है। यह प्रतिशोध लेने में निपुण और तत्पर होता है। सत्योक्ति उसे प्रिय होती है। परन्तु उसका अपने विरुद्ध प्रयोग किया जाना उसे असहनीय होता है। ऐसे जातक के व्यक्तित्व की एक कटु वास्तविकता यह है कि अपने विपरीत व्यवहार से परिचित होने के बाद भी उसे स्वीकार नहीं कर पाता। वृश्चिक लग्न का जातक अत्यन्त साहसी उत्साही, उद्धत और पराक्रमी होता है। प्रायः उसके आत्मीय ही उसके शत्रु होते हैं। ऐसी लग्न में यदि कोई कन्या जन्य ले तो उसमें पुरुषोचित गुणों का विकास अधिक होता है जबकि यह स्त्री राशि लग्न है। चेतावनी - आपको कंठ और कलेजा को सुरक्षित रखना चाहिए, मल मूत्र आदि की सफाई पर पूर्ण ध्यान देना चाहिए | छूत की बीमारी के प्रति, सचेत रहना चाहिए एवं प्रबंध रखना चाहिए | नशीले पदार्थों का प्रयोग भूल के भी नहीं करना चाहिए | ऐसे लोग रहस्यात्मक विषयों-ज्योतिष, तंत्र मंत्र-मंत्र, सामुद्रिक शास्त्र, दर्शन शास्त्र और मनोविज्ञान आदि में रुचि रखते हैं। चिन्तन-पद्धति और उसके विचार द्रुत परिवर्तनशील होते हैं। किन्तु एक बार किये हुए अन्तिम निर्णय पर इद हो जाता है। अपनी न्यूनता या त्रुटियों में आरोपित करने की इच्छा रहती है। आत्म-विश्वास प्रचुर होता है। जो सरलता से विचलित नहीं होता। जातक त्वरित और उचित निर्णय लेता है। प्रायः वाचाल होने के कारण अनर्गल वार्तालाप भी कर जाता है। ऐसा जातक अपना महत्व स्थापित करने के लिये अपने कृत्यों को बढ़ा-चढ़ा कर बताने में पटु होता है। वृश्चिक लग्न में उत्पन्न जातक दूसरों की त्रुटियां निकालने में सिद्ध हस्त होता है। वह सफल आलोचक होता है। यदि वह साहित्य के क्षेत्र में हो तो उसकी आलोचना इतनी तर्कसंगत होगी कि सामान्यतया कोई उसके प्रतिवाद का साहस नहीं कर सकता। ऐसा व्यक्ति पराधीन होकर कार्य करने में कठिनाई महसूस करता है। वह बहुत अच्छा मित्र होता है पर उससे भी कहीं प्रबल शत्रु होता है। वृश्चिक लग्न के व्यक्ति का वैवाहिक जीवन प्रायः मध्यम श्रेणी का होता है। उसके तर्क-वितर्क और महत्वपूर्ण बातों पर क्रोधित हो जाने के कारण, प्रायः अच्छी पत्नी भी उसे बुरी प्रतीत होने लगती है। यदि वृश्चिक लग्न की कन्या से विवाह करना हो तो अच्छी तरह जन्मांग का मिलाया जाना आवश्यक है। यदि लग्न पापाक्रान्त हो तो उपरिलिखित फलों का मिलाया जाना आवश्यक है। यदि मंगली दोषयुक्त जातक या जातिका का विवाह, वृश्चिक लग्न वाली कन्या या वर के साथ कर दिया जाय तो मंगली दोष निर्मूल हो जाता है। वृश्चिक लग्न वाले व्यक्ति के मन में सात्विक प्रेम की प्रबल लालसा होती है। मनोनुकूल कन्या से प्रेम हो जाने की स्थिति में, वह पूर्णतः प्रतिबद्ध रहता है तथा अटूट निष्ठा और विश्वास का पालन करता है। प्रेमास्पद के लिये किसी भी त्याग हेतु तत्पर रहता है। वृश्चिक लग्न का व्यक्ति यदि अपने उग्र स्वभाव तथा आक्रोश पर नियन्त्रण रख सके, तो सर्वोत्कृष्ट प्रेमी सिद्ध होता है। वृश्चिक लग्न के जातक बहुत तीव्र एवं तीव्रतापूर्ण स्वभाव के होते हैं | शत्रुओं से जीतना, हाथापाई करना इनके लिए सामान्य होता हैं | स्वयं के शरीर के साथ ये न्याय नहीं कर पाते, और क्षमता से अधिक शरीर को कष्ट देते हैं | मानसिक रूप से स्थिर नहीं होते हैं | इनके परिवार जटिल प्रकार के या धार्मिक प्रकार के होते हैं | ये लोग प्रायः अपने घर के पैसे हो कही न कहीं, किसी प्रकार से खो देते हैं | इनकी शिक्षा, मानसिक स्तिथि, बोलचाल ज्ञान पूर्ण होती हैं | अनुशासन वाले, आशावादी एवं विचारवान होते हैं | भाई-बहनों से बहुत सधी हुई बात करते हैं, जमीन जायदाद के प्रति रुचिवान एवं प्रायः उसका दुरुपयोग करते हैं | प्रायः ये पड़ी में अच्छे होते हैं, गाना बजाना भी पसंद करते हैं | शत्रुओं के प्रति घातक होते हैं, यदि मंगल शुभ न हों, तो ह्त्या भी कर सकते हैं | ये शत्रुओं से बदला लेने के लिए योजना बनाते हैं | | इनको संघर्ष बहुत मिलता है, या कहें संघर्ष में इन्हें, अच्छा लगने लगता हैं | इनके जीवन साथी प्रायः सुन्दर होते हैं | वे जीवन साथी के लिए कुछ भी कर सकते हैं, वे सच्चे प्रेमी होते हैं | पत्नी पक्ष से अच्छा व्यवहार होता है, कभी कभार ही व्यवहार में अंतर होता है, परन्तु क्षणिक | जासूस, अग्निशमन, पुलिस, जल्द ही निर्णय करने वाले, जोश में आकर कुछ भी करने वाले | इनको धर्म में आस्था होती है, ये एक बार धर्म से अलग होकर अवश्य रहते हैं | अच्छे अधिकारी, एडमिनिस्ट्रेशन में, सरकारी जॉब में, वे जहाँ अच्छा महसूस करते हैं, उस स्थान तक पहुँच जाते हैं | डॉक्टर, सर्जन, पढाई उच्च स्तरीय होती हैं | अपने लाभ करने के लिए लालायित, जैसे तैसे कमाना चाहते हैं, धन के अर्जन में उतार चदाब होते रहते हैं | कल्पना में तीव्र, पुस्तक पड़ने के शौक़ीन, शयन सुख, एवं स्वपन में भी अपने उद्देश्य के प्रति देखते हैं |

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Computations

वृश्चिक लग्न के लिए शुभाशुभ योग (१) शुभयोग :-गुरु पंचम (त्रिकोण) स्थान का स्वामी होने से शुभ है और शुभफलदायक होता है। (२) शुभयोग :-चन्द्रमा नवम (त्रिकोण) स्थान का स्वामी होने से शुभ है और शुभफलदायक होता है (३) शुभयोग :-सूर्य दशम (केन्द्र) स्थान का स्वामी होने से शुभ है और चन्द्रमा नवम स्थान का स्वामी होने से इन दोनों का सह-स्थानपतित्व योग उत्तम होकर शुभफल दायक है । (४) शुभयोग :--सूर्य दशम (केन्द्र) का स्वामी होने से श्लोक ७ के अनुसार शुभफलदायक है (पाठान्तर के अनुसार) (५) अशुभयोग :--बुध अष्टम और एकादश स्थान का स्वामी होने से अशुभ और अशुभफलदायक है। (६) आशुभयोग:-मंगल स्वाभाविकतः पापग्रह है और वह षष्ठ स्थान का स्वामी होने से श्लोक ६ के अनुसार अशुभ है (और निर्बल लग्न केन्द्र का स्वामी होने से निर्बली है) और अशुभ फलदायक है। (७) अशुभयोग :-शनि स्वयं स्वाभाविक पापग्रह है और वह चतुर्थ केन्द्र का स्वामी होकर तृतीय स्थान का अधिपति होने से अशुभ है और श्लोक ६ के अनुसार अशुभफल दायक है । (८) अशुभयोग :-शुभ योगकारक जो भी माना गया है फिर भी वह मारक (द्वितीय) स्थान का स्वामी होने से अशुभफल देने वाला है। (९) अशुभयोग :-शुक्र सप्तम (मारक) स्थान का स्वामी होकर केन्द्राधिपति होने से श्लोक ७ और १० के अनुसार अशुभ है और अशुभ-फल दायक हैं। निष्फलयोग :-(१) मंगल + गुरु; (२) गुरु + शुक्र (दोनों ग्रह दूषित होते हैं) सफलयोग :-(१) चन्द्र + मंगल (सदोष); (२) चन्द्र + शनि ( सदोष ) (३) चंद्र + सूर्य; (४) चंद्र + शुक्र (सदोष)