मकर राशि

Rashi Description

मकर लग्न शनि द्वारा शासित होती है। यह दक्षिण दिशा की स्वामी, पृथ्वी तत्व की सौम्य परन्तु चर राशि है। यहां पर मंगल उच्च होता है और मकर 28 पर परमोच्च होता है। बृहस्पति मकर राशि में नीचस्थ होता है तथा 5 पर परम नीच का होता है। यह स्त्री राशि है तथा पीछे से इसका उदय होने के कारण इसे पृष्ठोदय कहते हैं। यह कालपुरुष में पैरों के घुटनों पर अपना प्रभाव डालतो है। एक विडम्बना यह है कि मंगल मकर राशि में उच्च का होता है जब कि मकर राशि का स्वामी शनि मेष राशि अर्थात् मंगल की राशि में नीच का होता है। मेष राशि में स्थित शनि यदि मकर राशिगत मंगल पर दृष्टि डालेगा तो मंगल भी शनि को देखेगा और दोनों ग्रहों में विनिमय दृष्टि सम्बन्ध के साथ-साथ विनिमय परिवर्तन योग भी होगा, ऐसी स्थिति में शनि नीचस्थ और मंगल उच्चस्थ होगा। ऐसे में फल प्रतिपादित करने में पर्याप्त संयम रखना चाहिए। मकर लग्न के जातक के शरीर का निचला भाग दुबला पतला तथा निर्बल होता है। जातक कद का लम्बा होता है परन्तु उसके शरीर का गठन कठिन रूप का होता है। कफ वात प्रकृति प्रधान होता है। बड़ा उत्साही तथा परिश्रमी होता है। आंखों की भौहों पर बड़े-बड़े कड़े बाल होते हैं। सीने पर भी इसी तरह के बाल होते हैं। उसका सिर कुछ बड़ा तथा सीना चौडा होता है। नाक और मंह कुछ बड़े या चौड़े होते हैं, तथा दांत बड़े होते हैं। ऐसे लोग बाद में कुछ थोडे से झुक जाते हैं या आगे कुछ झुककर चलते हैं। यह प्राय: दुबला और बड़ा गतिशील, क्रियाशील होता है। मकर लग्न के जातक को जीवन की अनेक कठिनाइयों का सामना करना है। जातक की जो व्यक्ति हानि करता है उससे वह बदला लेने को तत्पर रहता है यह स्पष्ट रूप से अपना विचार प्रकट करता है, चाहे उसके विचार से किसी को मानसिक आघात ही क्यों न पहुंचे। वह सादी प्रकृति का, नीच विचार का तथा मन से डरपोक कुछ हद तक घमंडी भी होता है। वह प्रत्येक कार्य सावधानी पूर्वक तथा विचार करने के पश्चात् करता है। पुण्य कर्म में रुचि रखता है तथा ईश्वर में उसकी पूर्ण निष्ठा होती है। वह अपने अधीनस्थ लोगों से कार्य लेने में निपुण होता है अपने काम के लिये विशेष रुचि लेता है और पूरी लगन के साथ करता है। दूसरों को ठगने मे जातक की अभिरुचि होती है। अपना काम निकालने के लिये वह कुछ भी कर सकता है। वह बहुत उच्चाभिलाषी होता है तथा अपने समूह में प्रमुख स्थान रखने के लिये प्रयत्नशील रहता है। उसका अपना अलग दबदबा हो, ख्याति चारों ओर फैले तथा सभी उसके कार्यों की प्रशंसा करें, इसके लिये वह उद्यम करता है। स्त्री पक्ष से ऐसा जातक सदैव दु:खी रहता है तथा कई बार वैवाहिक विषमताओं का शिकार होना पड़ता है। मकर लग्न का जातक अपने आपको परिस्थिति के अनुसार बदल सकने में, या उसी प्रकार अपने आपको ढाल लेने में सक्षम होता है। उसे धन की समुचित व्यवस्था करने में प्राय: असफलता का मुंह देखना पड़ता है। उसे बाहरी दिखावट या चमक में बड़ा विश्वास होता है। किसी भी कार्य के लिये अथक परिश्रम करके भी उसे पूरा कर डालना इसकी विशेषता होती है। यदि मंगल स्वगृही न होकर कहीं और संस्थित हो तो जातक अस्थिर विचार और स्वभाव का होता है। ऐसे लोगों का अपनी जिह्वा पर बिल्कुल भी नियन्त्रण नहीं होता, हर तरह की बात करने या गप हांकने में सक्षम होते हैं। इनकी जिह्वा से प्राय: अवांछित बातें भी निकल जाती हैं, अत: ऐसे जातक बहुत भरोसेमन्द नहीं होते। मकर लग्न के लिये शुक्र पंचमेश और दशमेश होने के कारण योगकारक ग्रह होता है। शुक्र जिस भाव में स्थित होता है, उसी की वृद्धि करता है। शनि लग्नेश और द्वितीयेश होता है। साधारणत: शनि को लग्न में अशुभ माना जाता । परन्तु शनि यदि स्वराशिगत होकर या अपनी उच्च राशि तुला में हो तो यश योग की स्थापना होती है, जो जातक के व्यक्ति को अति प्रभावशाली विशिष्ट बनाती है और जातक एक उच्च कक्षा का व्यक्ति होता है। शनि चाली द्वारा शासित राशियों अर्थात् धनु और मीन में भी उत्तम फल प्रदान करता है । मकर लान वाले जातक के शरीर का निचला भई भाग दुबला, पतला तथा वित होता है। समा और शरीर का गठन कठिन रूप का होता है, का-वात प्रकृति से पीड़ित होता। जातक मा उत्साही तवा परिश्रमी होता है। उसका गिता उससे माला लेने में ऐसा जातक सांस तत्पर रहता है। वह खुले तौर से अपना विचार प्रकट करता है, चाहे उससे किसी के दिल पर चोर क्यों न पहुँचे। ऐसा जातक मिजाज का शकी, प्रकृति का नीच और कलेजे का डरपोक तथा अहंकारी होता है। वह प्रत्येक काम सावधानी से तथा विचारपूर्वक करता है । पूण्य कर्म में तत्पर और धार्मिक तथा ईश्वर का डर रखता है । वह अपने आश्रितों से काम लेने में निपुण होता है।वह अपने काम का यार होता है। दूसरों को आने में उसकी रुचि रहती है। उसकी सतत ऐसी इच्छा रहती है, कि अपनी मित्र मंडली में प्रमुख और सम्मानित हो तथा अपनी ख्याति के लिये सदा प्रयत्नशील रहता है। स्त्री पक्ष से ऐसा जातक सर्वदा दुःखी रहता है और प्रायः दुःख भोगता है। किसी किसी अवसर में दानशील भी होता है। कन्या होने से विशेष गुण दोषः-धार्मिक, सत्यप्रिया, विचारशीला और मितव्ययो होतो है। शत्रु-रहिता, सुविख्यात और बहु-पुत्र वाली होती है। ऐसे जातक के लिये शुक्र और बुध उत्तम फल देने वाले ग्रह होते हैं। इन दो में से शुक सबसे उत्तम फल देने वाला होता है। पञ्चमेश एवं दशमेश होने के कारण शुक्र स्वयं राज-योग देता है। शुक्र और बुध के योग से भी राज-योग होता है। मंगल वृ. और चं. शुभ-फल नहीं देते। इन सबों को मारकत्व भी होता है। शनि को भी मारकत्व होता है। परन्तु वह स्वयं मारकेश नहीं होता है। सूर्य को भी मारकत्व नहीं होता है। सूर्य को अष्टमेश होने का भी दोष नहीं लगने के कारग, साधारण फल देता है। यदि मकर राशि में मंगल बैठा हो और कर्क में चं. बैठा हो अर्थात् लग्न में मंगल और सप्तम में चं. बैठा हो तो मकर लग्न वाले के लिये राज-योग होता है। परन्तु यदि बुध अष्टमस्थान में हो वृ. लग्न में हो, और उस पर शु. की दृष्टि हो तो जातक का स्वास्य अच्छा होता है परन्तु वह दरिद्र होता है। पहिले नवांश में लग्न के होने से प्राकृतिक स्वभाव का पूर्ण विकास होता है। चेतावनी। ऐसे जातक को चमरोग प्रायः दुःखी करता है। इस कारण, कोष्ट-बद्धता से सर्वदा बचने का प्रयत्न करना उत्तम होता है। ठंढक और सर्दी से शरीर को बचाये रहना मुख्य कर्त्तव्य होगा। कभी-कभी ठेहुने को भी बीमारी आ सताती है। उसे चित्त-विक्षिप्त-रोग (मिलेनकोलिया) (Melancholia ) से का सर्वदा प्रयत्न रखना उचित है। बहुत अनुशासित, वे जीवन में किये जाने वाले विशेष कार्यों के प्रति बहुत सचेत होते हैं | जीवन भर एक स्थान पाना चाहते हैं, परन्तु आत्मविश्वास कम होता है | चाहे समाज इनको संदेह रहित ( आश्वस्त) माने, परन्तु ये अन्दर ही अन्दर कमजोर होते हैं | ये किसी विशेष प्रतिभावान परिवार से होते हैं, इनके पिता वैज्ञानिक, शोधकर्ता अथवा अपनी बातों से लोगों का दिल जीतने वाले होते हैं | वे जीवन में बहुत कुछ बड़ा करना चाहते हैं, परन्तु इतना ये कर नहीं पाते | वे भाई बहनों, नजदीकी लोगों, मित्रों से बहुत सधा हुआ वार्तालाप करते हैं, यदि भाई को उनसे बात करनी हैं आये, दोस्त को बात करनीं हैं तो वो कॉल करे | यदि उनको कोई पसंद नहीं करता तो वे कह सकते हैं कोई बात नहीं | उनके घर का माहौल बहुत ही अनुशासित और कठोर होता हैं | इनके घर में प्रायः हथियार आदि भी संभवतः होते हैं | घर में प्रायः जोशीला, या झगड़े का माहौल होता है | परिवार में किसी प्रकार की घटना होती रहती है, माता बहुत प्रभावी (प्रभुत्व) वाली, एवं व्यस्त महिला होती हैं | आप बच्चों पर अधिक खर्च करते हैं, और बच्चों द्वारा उनकी धनहानि भी होती है | मीडिया, फिल्म जगत से सम्बंधित लोग, वे अपने कार्य क्षेत्र में अधिकारी होना चाहते हैं, वे सट्टे जैसे व्यापर में कोशिश करते हैं | शत्रु एवं दैनिक कार्य उनके ठीक ठाक होते हैं | वे यदि शत्रु से बहस करते हैं, तो ये अवश्य संभव है की शत्रु उनसे प्रभावित हो शत्रुता त्याग दे | ये लोग अच्छे वकील या राजनेता हो सकते हैं | विवाह में ये अपने जीवन साथी से बहुत आशा करते हैं, कि उन पर बहुत ध्यान दिया जाये | प्रायः उनकी माता से उनको अधिक प्रेम और पोषण नहीं मिलता हैं, इसलिए इनकी ऐसी आशा रहती है | अहंकार और आत्म सम्मान बार बार घटता बढता रहता हैं, इस कारण वे सदैव बहुत बड़े पद पर कार्य करना चाहते हैं | धर्म के प्रति बहुत प्रयोगात्मक सोच होती हैं, कुछ मानते हैं कुछ नहीं मानते हैं | ऐसे लोग सौन्दर्य संसाधन अथवा सुन्दरता से सम्बंधित कार्य करते हैं | वे अपनी आमदनी को छिपा लेते हैं, यहाँ तक की जीवन साथी को से भी | ये धन को कहीं छिपा कर रखना चाहते हैं | बहुत अध्यात्मिक होते हैं, वो दान देते हैं, परन्तु दान का प्रयोग वे अपने लाभ के चलते करते हैं |

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Computations

मकर लग्न के लिए शुभाशुभ योग :- (१) शुभ योग -शुक्र स्वयं शुभग्रह है वह पंचम ( त्रिकोण ) स्थान का स्वामी होने से श्लोक ६ के अनुसार शुभ है और दशम स्थान का अधिपति होने से प्रबल दूषित होता है । परन्तु बुध के साथ नवम स्थानाधिपत्य के साहचर्य योग के कारण वह शुभ बनता है और शुभ फल देता है। (२) शुभ योग :-बुध स्वयं शुभग्रह है और नवम (त्रिकोण स्थान ) का स्वामी होने से श्लोक ६ के अनुसार शुभ होता है परंतु षष्ठ स्थान का स्वामी होने से श्लोक ६ के अनुसार अशुभ होता है। उससे शुक्र के साथ स्थानाधिपत्व साहचर्य के योग के कारण वह शुभ होता है और शुभफल देता है । (३) अशुभ योग :-मंगल स्वयं पापग्रह है । वह चतुर्थ केन्द्र स्थान का स्वामी होने से श्लोक ७ के अनुसार शुभ होता है परन्तु एकादश स्थान का स्वामी होने से श्लोक ६ के अनुसार अशुभ है और अशुभ फल देनेवाला होता है । (४) अशुभ योग :-गुरु स्वयं शुभग्रह हैं परन्तु वह तृतीय स्थान का स्वामी होने से श्लोक ६ के अनुसार अशुभ है। गुरु व्यय स्थान का भी स्वामी होने से अशुभ है। और अशुभ फल देनेवाला होता है। (५) अशुभ योग :-चन्द्रमा शुभग्रह है। वह सप्तम (मारक स्थान) स्थान का अधिपति है और केन्द्राधिपत्य दोष के कारण श्लोक ११ के अनुसार स्वल्प दूषित होता है इसलिए वह अशुभ माना गया है और अशुभफल देता है। (६) अशुभ योग :-शनि स्वयं पापग्रह है और वह द्वितीय (मारक) स्थान का स्वामी होने से अशुभफल देनेवाला होता है । निष्फल योग :-यह एक ऐसी कुंडली है जिसमें निष्फल योग नहीं बनता। योग :-(१) शुक्र अकेला राजयोग करनेवाला है; (२) शुक्र + शनि; (३) बुध + शुक्र श्रेष्ठ योग श्लोक २० के अनुसार; (४) शुक्र + मंगल (सदोष); (५) बुध + शनि (सदोष); (६) चन्द्र + बृध (सदोष); (७) चन्द्र + शुक्र ( सदोष ) चन्द्रमा दोष युक्त है; (८) मंगल + बुध (कनिष्ठ ) कारण मंगल एकादशेश होने से दूषित है और बुध षष्ठेश होने से दूषित है। दोनों दूषित होने से निकृष्ठ योग होता है।

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