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पुष्य नक्षत्र
पुष्य अर्थात् पुष्ट करने वाला। सूर्य के आर्द्रा नक्षत्र में आने पर धरती की वनस्पतियाँ पुष्ट होती हैं, सम्भवतः इसीलिए इस नक्षत्र का नाम पुष्य पड़ा। इस नक्षत्र का एक अन्य नाम तिष्य है, जिसका अर्थ शुभ या मांगलिक या तुष्टि प्रदान करने वाला है। इस नक्षत्र के नाम पर पौष (पूष) महीने का नामकरण हुआ। कर्क राशि के केन्द्र में स्थित तीन धूमिल तारों के इस नक्षत्र में लोग तीर की आकृति की कल्पना करते हैं। इस नक्षत्र का मुख्य तारा डेल्टा कर्क है, जो ठीक-ठीक रवि-पथ पर अवस्थित है। इस नक्षत्र को सिद्धि प्रदान करने वाला कहा गया है, अतः इसका एक नाम सिध्य भी है।
तारों की संख्या 3 तारे का वैज्ञानिक नाम : कर्क मंडल के गामा, डेल्टा और थीटा तारे अयनांश 93°20' से 106°40' तक राशि कर्क सूर्य का वास 20 जुलाई से 3 अगस्त तक (लगभग)
पीपल को संस्कृत में पिप्पल (अर्थात् इसमें जल है), बोधिद्रुम (बोधि प्रदान करने वाला वृक्ष), चलदल (निरन्तर हिलती रहने वाली पत्तियों वाला), कुञ्जराशन (हाथी का भोजन), अच्युतावास (भगवान् विष्णु का निवास), पवित्रक (पवित्र करने वाला), अश्वत्थ (स्थिर न रहने वाला) तथा वैज्ञानिक भाषा में फाइकस रिलिजिओसा कहते हैं। यह रेगिस्तानी क्षेत्र को छोड़कर पूरे भारत में पाया जाता है। चिड़िया इसके फलों को खाकर जहाँ कहीं मल त्याग करती है
इस वृक्ष में भगवान् विष्णु का निवास माना जाता है। भगवान् कृष्ण ने गीता में कहा है कि सभी वृक्षों में मैं पीपल हूँ (अश्वत्थः सर्व वृक्षाणाम्)। इसके रोपण, सिंचन, पूजन की महत्ता सभी धार्मिक ग्रन्थों में भूरि-भूरि की गयी है। इस वृक्ष का सिंचन, परिक्रमा, नमन व सम्मान करने से समस्त शुभ फल प्राप्त होते हैं और हर प्रकार के दुर्भाग्य का नाश होता है। जलाशयों के किनारे इस वृक्ष के रोपण का विशेष पुण्य बताया गया है