+91-966-766-7441
alok.ptbn@gmail.com
भरणी अर्थात् भरण करने वाली। अथर्ववेद में भरणी नक्षत्र में तारों की संख्या तीन बतायी गयी है - तिस्रो भरण्यः ।
भरणी अर्थात् भरण करने वाली। अथर्ववेद में भरणी नक्षत्र में तारों की संख्या तीन बतायी गयी है - तिस्रो भरण्यः । वस्तुतः यह मेष मण्डल में अश्विनी नक्षत्र के उत्तर पूर्व में त्रिभुज की आकृति बनाने वाला मन्द प्रकाश के तीन तारों का समूह है, जिसका पाश्चात्य नाम मस्का अर्थात् मक्खी है। मेष मण्डल में इन तारों के वैज्ञानिक क्रमांक 41, 39 और 35 हैं, जिसमें41 क्रमांक का तारा इन नक्षत्र का योग तारा है। दिसम्बर माह में रात्रि के करीब नौ-दस बजे मध्य आकाश में देखा जाए तो अश्विनी, भरणी, कृतिका और रोहिणी एक अर्धवृत्त में क्रमशः पश्चिम से पूर्व स्थित नजर आएंगे।
तारों की संख्या : 3 | तारों का वैज्ञानिक नाम : मेष मंडल तारा क्रमांक-35, 39 व 41 | अयनांश : 13°20' से 26°40' तक | राशि : मेष | सूर्य का वास : 27 अप्रैल से 11 मई तक (लगभग)
इसे वैज्ञानिक भाषा में फाइलेन्थस इम्ब्लिका कहते हैं। यह शुष्क व थोड़ी गर्म जलवायु पसन्द करता है, किन्तु पाला नहीं सह पाता। इसके फूल गर्मियों में आते हैं और शीत ऋतु तक इसके फल तैयार हो जाते हैं। आँवले का फल विटामिन-सी का सबसे समृद्ध स्रोत (720 मिग्रा प्रति 100 ग्राम) है। इसके रस में नारंगी से 20 गुना अधिक विटामिन-सी होता है। आँवले में उपस्थित अन्य रसायन इसमें उपस्थित विटामिन को खराब होने से बचाते हैं तथा पेट में जाने पर इस विटामिन को शरीर में जल्दी स्वांगित (Assimilate) कराते हैं। आँवले को नमक के घोल में या चूर्ण के रूप में रखने से इस विटामिन की विशेष हानि नहीं होती।
पौराणिक मान्यता के अनुसार यह वृक्ष भगवान् विष्णु को अतिप्रय है। स्कन्दपुराण के अनुसार जिस घर में आँवला रखा रहता है, वहाँ भूत, प्रेत और राक्षस नहीं जाते। पद्मपुराण के अनुसार जिस घर में आँवला सदा मौजूद रहता है, वहाँ दैत्य और राक्षस नहीं जाते। इस वृक्ष का स्मरण, दर्शन व पूजन पुण्यदायक है। कार्तिक में इस वृक्ष की छाया में भोजन करने से एक वर्ष तक अन्न-संसर्ग से उत्पन्न हुए पाप का नाश होता है। कार्तिक शुक्ल नवमी को धात्री नवमी कहते हैं। इस दिन धात्री (आँवले) की विष्णु भगवान् के रूप में पूजा की जाती है।