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ज्येष्ठा-नक्षत्र
ज्येष्ठा अर्थात् सबसे बड़ी। वृश्चिक मण्डल में वृश्चिक रीढ़' पर स्थित तीन तारे ज्येष्ठा नक्षत्र बनाते हैं। ज्येष्ठ महीने की पूर्णिमा की रात्रि में अधिकतर चन्द्रमा इसी नक्षत्र में होता है, ये दिन साल में सबसे बड़े व सबसे गर्म होते हैं। सम्भवतः इसीलिए इस नक्षत्र का नाम ज्येष्ठा पड़ा। इस नक्षत्र का केन्द्रीय तारा अल्फा वृश्चिक लाल रंग का एक महादानव तारा है, जिसका व्यास सूर्य से चार सो गुना अधिक है व हम सबसे 173 प्रकाश-वर्ष दूर है। मंगल ग्रह जैसा बड़ा व लाल दिखने के कारण इसे पाश्चात्य भाषा में एंटारेस (मंगल का प्रतिद्वन्द्वी) कहा गया।
तारे की संख्या 3 तारे का वैज्ञानिक नाम वृश्चिक मंडल के सिग्मा, अल्फा और टौ तारे अयनांश 226°40' से 240°00' तक राशि : वृश्चिक सूर्य का वास 3 दिसम्बर से 16 दिसम्बर तक (लगभग)
चीर का अर्थ है फटा हुआ। इस वृक्ष की छाल विशिष्ट रूप से फटी हुई होती है, इसलिए इसे चीर या चीड़ कहते हैं। सरल रेखा की भाँति सीधी लम्बाई में बढ़ने के कारण इसे संस्कृत में सरल कहा गया। इसका वैज्ञानिक नाम पाइनस राक्सबर्घाई है। संस्कृत में इसे पीतवृक्ष, सुरभिदारूक, धूपवृक्षक, प्रतिकाष्ठ आदि नाम भी दिये गये हैं। सामान्यतया इसके वन हिमालय के निचले क्षेत्रों में पाये जाते हैं।
हवन में चीड़ की लकड़ी या इसका चूरा प्रयुक्त होता है। लीसा को संस्कृत में श्रीवास व श्रीवेष्ट कहकर लक्ष्मी जी से सम्बन्धित किया गया है। रक्षोग्रह-बाधा दूर करने में राल लाभदायक है। नोट : महाराष्ट्र क्षेत्र में ज्येष्ठा नक्षत्र के लिए सेमल वृक्ष प्रचलित है तथा मलयालम के योगक्षेम पंचागम् में वेट्टी शब्द दिया है जो एपोरोजा लिन्डलियाना वनस्पति के लिए प्रयुक्त होता है।