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आर्द्रा-नक्षत्र
आर्द्रा अर्थात् गीला करने वाली। मृग मण्डल या ओरायन मण्डल में उत्तर पश्चिम कोने पर स्थित एक बड़ा लाल तारा आर्द्रा नक्षत्र कहलाता है। इस तारे का वैज्ञानिक नाम अल्फा मृग और पाश्चात्य नाम बेतुलगूज है। लाल रंग का यह तारा हमसे करीब 240 प्रकाशवर्ष दूर है, इस महादानव तारे का व्यास सूर्य के व्यास से करीब सौ गुना अधिक है। आर्द्रा यदि सूर्य का स्थान ले ले तो मंगल तक के सभी ग्रह उसके उदर में समा जाएँगे। सूर्य के इस नक्षत्र में आने पर (22 जून से 4 जुलाई) वर्षा शुरू हो जाती है। अतःइस नक्षत्र के शब्दार्थ 'आर्द्रा' को वर्षा-आगमन से जोड़ा जाता है। पुराणकारों के अनुसार इस नक्षत्र के देवता रूद्र शंकर की पत्नी ही आर्द्रा है।
तारों की संख्या :1 तारे का वैज्ञानिक नाम मृग मंडल का अल्फा तारा अयनांश 66°40' से 80°00' तक राशि मिथुन सूर्य का वास 22 जून से 6 जुलाई तक (लगभग)
शीशम, जिसे संस्कृत में शिशपा, पिच्छिला, श्यामा, कृष्णसारा आदि नामों से जानते हैं, इसका वैज्ञानिक नाम डैलबर्जिया सिस्सू है। डा. मायाप्रसाद उनियाल के अनुसार शय आक्रोशे धातु से शिशपा (शीशम) बना है अर्थात् यह काटने वाले को शाप देता है।
धार्मिक दृष्टि से स्पर्श में आनेवाली काष्ठ सामग्री जैसे तख्त, चारपाई, चौकी, कुर्सी आदि का निर्माण शीशम की लकड़ी से करना अच्छा होता है। आर्द्रा नक्षत्र की वनस्पति पहचान पर विचार की आवश्यकता आर्द्रा नक्षत्र की वनस्पति के लिए हर ग्रन्थकार ने कृष्ण संज्ञा प्रयोग की है, जिसका अर्थ राघव भट्ट ने काला खैर (अकेसिया केटेचू) कर्नाटक वन विभाग ने पीपर (Piper longum) तथा मराठी लोगों ने काला अगरू (Vepris bilocularis) ग्रहण किया है। केरल में इस नक्षत्र के लिए करिमरम (काला वृक्ष) का नाम आया है, जिसका वैज्ञानिक नाम डायोस्पाइरास मिलानोजाइलान अर्थात् तेन्दू है।