मीन राशि

Rashi Description

ऐसा जातक सुदर्शन और आकर्षक देहयष्टि का स्वामी होता है। उसमें पित्त की प्रधानता होती है। जल के प्रति उसमें अद्भुत आकर्षण होता है। जल के परिवेश से उसे सुख-सन्तोष प्राप्त होता है। वह जल के अत्यधिक प्रयोग में रुचि लेता है। विलास-भोग और ऐश्वर्य उसकी मनोवृत्ति का संपोषण करते हैं। उसके जीवन का इष्ट सुविधा सम्पन्न एवं सुखमंडित चर्या सिद्ध होती है। "याकन्जीवेत सुखं जीवेत्" की प्रतिमूर्ति ऐसा जातक आर्थिक व्यय के सन्दर्भ में अनुत्तरदायी, उच्छृङ्खल, उद्धत तथा विवेकहीन होता है। भावनाओं का उद्दाम आवेग कविता और ललित सृजन के क्षेत्र में जातक को सक्रिय करता है। इन क्रियाओं में उसे असीम आनन्दानुभव होता है। वह बहुश्रुत, बहुअधीत और बहुआयामी व्यक्तित्व का धनी होता है। इसके मूल में उसकी व्यस्त मनोवृत्ति स्थित होती है। वह प्रत्येक पल को उपयोग की तुला पर तौलता है। चित-अनुचित-आवश्यक- अनावश्यक, महत्वपूर्ण-अमहत्वपूर्ण कार्य में व्यस्त ऐसा जातक अपने जीवन को यांत्रिक सभ्यता का प्रतिरूप बना देता है। उसका सामान्य ज्ञान पर्याप्त प्रशस्त होता है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विज्ञापन करते हुए भी ऐसा जातक अनेक सन्दर्भो में अन्धविश्वास को आश्रय देता है। अपने कार्यों से पर्याप्त यशोपार्जन करता है। धन और यश के लिये वह सचेत रहता है। अवसरों का पर्याप्त चतुराई, तत्परता तथा कभी-कभी धूर्तता से उपयोग करता है। युवावस्था के आरम्भ तक अनेकानेक दुर्घटनायें जातक के सामने सुखावरोध उत्पन्न करती हैं। किन्तु वह भाग्य तथा कर्म के प्रभाव से सुरक्षित रहता है। साहस और भीरूता का मिश्रित व्यवहार परिलक्षित होता है। अकारण तथा सकारण उत्पन्न परिस्थितियां धन का नाश करती हैं। संकल्प-विकल्प, निश्चय-अनिश्चय, निर्णय-अनिर्णय, और करणीय-अकरणीय के द्वन्द्व में जातक के जीवन का उत्कृष्ट कालांश निरर्थक हो जाता है। मित्रों और ललित कलाओं के सम्पर्क का सुख उपलब्ध रहता है। पंखर, मेघा, सुस्पष्ट स्मृति और सम्पन्न चेतना का धनी ऐसा जातक अपनी पत्नी को अत्यन्त प्रेम करता है। उसकी सन्तानों में कन्याएं अधिक होती हैं। यदि स्त्री जातक की कुण्डली में मीन लान हो तो वह सौन्दर्य की स्वामिनी होती है। और केशों का आकर्षण विशिष्ट होता है। आचरण में करुणा, धर्मावलभ्यिता एवं परहित की भावनाएं होती है। उसका पत्य सुखी एवं समृद्ध होता है। पुत्र और पौत्र का सरस सान्निध्य रहता है। आता को व्यवहार । वरीयता देती है। मीन लग्न वाले जातक स्वास्थ्य की दृष्टि से अस्थिर वृत्ति के होते है। संक्रामक व्याधियों से सावधानी अपेक्षित होती है। इन्हें ऐसे व्यक्तियों और स्थान से बचना चाहिये जो संक्रामक रोग के कारण हो सकते हैं। मादक-उत्तेजक पदार्थों का सेवन, पैरों में शीत-प्रकोप, अत्यधिक जल सेवन, निरर्थक सन्ताए और चिंतित चित्तवृत्ति जातक के लिये संघातक तथ्य हैं। मीन लग्न में उत्पन्न जातक प्रायः गौरांग, मध्यम देहयष्टि सम्पन्न, मीन नेत्री और किंचित स्थूलदेशी होता है। क्षीणकाय कभी नहीं होता और मांसल मुखाकृति, सुन्दर केश और आयु वृद्धि के साथ शारीरिक स्थूलता मीन लग्नोत्पन्न जातक की विशेषता होती है। अतः प्रकृति में धार्मिकता और गंभीरता का अच्छा समन्वय होता है। अन्यान्य मा पर शीघ्र विश्वास करने से एवं निष्कर्ष प्राप्त करने में आतुर प्रवृत्ति रखने से अनेक बार विपरीत स्थितियां भी उद्घाटित होती हैं। ये आत्मगोपन में रुचि लेते हैं। पराश्रयता की स्थितियों में आनन्द प्राप्त करते हैं। धनोपार्जन न्यून होने के उपरान्त भी हठी स्वभाव के कारण व्यय पर नियन्त्रण नहीं रखते। अल्प आत्मविश्वासी, न्यायप्रिय, विश्वासपात्र और वचनरक्षक होते हैं। रोमांच और रोमांस से आप्लावित जीवन पद्धति पर दार्शनिक विचारों का अद्भुत प्रभाव रहता है। मीन के द्विस्वभाव राशि होने के कारण मधुर-सरल व्यवहार भी जटिलता से ग्रस्त रहता है। प्राय: आत्मखंडन और अन्तर्विरोध को आश्रय देने के कारण भी ऐसा होता है। दूसरों से आशान्वित, विनम्र, सार्थक मित्र, गम्भीर विचारधारा के धनी और आशु परिवर्तनशील मन:स्थिति के प्रतीक । ऐसे जातक अपने मित्रों पर अत्यन्त निर्भर रहते हैं। इनमें गम्भीर पारिवारिक उत्तरदायित्व होता है। पारिवारिक अथवा ग्राहस्थिक सम्बन्ध सूत्रों को महत्वपूर्ण मानते हैं। अपवादस्वरूप किन्चित् सन्देह भावना इनमें होती है। प्रणय के प्रति नितान्त प्रतिबद्ध रहते हैं इस क्षेत्र में निश्छल और निस्वार्थ सरस भावना से आप्लावित रहते हैं। ऐसे जातक कर्क अथवा कन्या लग्न वाले जातकों से वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित होने पर उत्तम दम्पत्ति सिद्ध होते हैं। मीन लग्न पंजा, पैर, ऐड़ी, पैर की अंगुलियों, दांत और बाई आंख को नियन्त्रित करती है। स्वभावतः मीन लग्न पापाक्रान्त होकर इन अगों-उपांगों को व्याधिग्रस्त करती है। मीन लग्न वाले जातक का शरीर सुन्दर और सुडौल होता है। ऐसा शासक पित्ताधिक होता है और उसको जल से अधिक प्रेम रहता है तथा कभी कभी अधिक जल पीता भी है। वह बड़ा विलासी होता है। सुख, शान्तिमय और भोग विलास मय जीवन व्यतीत करना ही उसके जीवन का सिद्धान्त रहता है। इस कारण, वह आँख मूंदकर पानी की तरह रुपया खर्च करता है। वह कुशल-कवि और लेखक होता है तथा इसमें उसको आनन्द प्राति होती है । वह कभी भी समय नष्ट नहीं करता और ऐसा जातक सदा किसी न किसी काम में लगा हुआ तथा ज्यात प्रतीत होता है । यद्यपि सचमुच में कार्य-व्यस्त न भी हो (ऐसे जातक लिये अंग्रेजी में एक कहावत wily idle बहुत समुचित होता है)। वह बहुत सी बातों का जानने वाला होता है और सभी बातों का खबर रखता है। ऐसा जातक बहुत सी बातों में अन्ध-विश्वासी होता है । कीति-सम्पन्न, दक्ष, अल्पाहारी, चपल, पूर्व और धन सम्मृति पाला होता है। ऐसे जातक को बचपन एवं युवा- वस्था के प्रारम्भ में अनेक दुर्घटनायें उपस्थित होती हैं पर उन से वह बच जाता है। इसके धनकी हानि, शत्रुद्वारा और पारस्परिक राग-द्वेष से होती है। ऐसा जातक समय समय पर साहस से काम लेता है और कभी-कभी भीरु भी हो जाता है। अनिश्चित विचार और अदृढ़ संकल्प अथवा संकल्प-विकल्प में पड़ कर बहुत सा अच्छा समय जातक के हाथ से निकल जाता है । उसे नाटक, सङ्गीत, चित्र, नाच तथा अन्य सुललित कलाओं में अभिरुचि और प्रेम होता है। ऐसा जातक मेधावी, बहुत ही उत्तम स्मरण-शक्ति वाला और बहुत सी कन्या वाला तथा स्त्री से प्रेम रखने वाला होता है। उसके मित्र प्रसिद्ध तथा कीर्ति-शाली व्यक्ति होते हैं। कन्या होने से कुछ विशेष गुण दोषः- ऐसी जातिका रूपवती होती है। उसके नेत्र और बाल सुन्दर होते हैं। आज्ञाकारिणो, पति से प्रेम रखने वाली, करुणा रखनेवाली और पूजा-पाठ में प्रेम रखने वाली होती है तथा पुत्र-पौत्रादि वाली होती है। मारक वृ. और मंगल के योग से राज-योग होता है। मंगल और चं, के योग से उत्तम फल होता है। वृ. साधारण फल देता है। श. सबसे प्रवल होता है। उसके बाद शुक्र को मारकत्व होता है। मंगल स्वयं मारक नहीं होता। चं. और मं. उत्तम फल देने वाले होते हैं। श., शु., र. और बुध अच्छे फल नहीं देते हैं। श. के द्वादशस्थ होने से फल अच्छा होता है। चं. के द्वादशस्थ होने से जातक को बहुत सी कन्याएं होती हैं और कभी-कभी एक पुत्र भी होता है। नवें नवांश में लग्न के रहने से प्राकृतिक स्वभाव का पूर्ण विकास होता है। ऐसे जातक को प्रायः स्वास्थ्य की ओर से असावधानी रहती है। छूत छात की बीमारी से ऐसे जातक को बचना अति आवश्यक है। जिस किसी प्रान्त में ऐसी बीमारी फैली हो वहां से उसको संसर्ग रखना उचित नहीं। प्रायः ऐसे जातक के पैर में ठंढ लगने से भी रोग की उत्पत्ति होती है । मादक तथा नशीली पदार्थों से सदा बचे रहना उपयोगी होता है। मात्रा से अधिक जल पीना भी हानिकारक है। चिन्ता और व्यस्त के झंझटों से अपने को बचाये रखना उसका कर्त्तव्य होगा। एकान्तप्रिय, हॉस्पिटल, आश्रम, जेल, किसी ऐसे स्थान पर कार्य करते हैं, जो किसी को प्रदर्शित न कर सकें, मतलब परदे के पीछे, किसी कार्य को करने वाले | बहुत सक्रीय परिवार, जैसे की परिवार के लोग एडवेंचर के लिए प्रति रूचि वाले, पिता शराब का सेवन कर सकते हैं - (मंगल एवं शनि की स्तिथि के अनुसार), पिता इंजिनियर, पुलिस में, प्रबंधन में, सरकारी कार्य में या सेना में हो सकते हैं | बहुत प्रभावी बातें करने वाले, लोगों पर प्रभाव बनाने वाले, वे गुप्त या ऐसे विषय जिस पर लोग चर्चा न करते हों, ऐसे विषय में चर्चा करना पसंद करते हैं | परिवार में अधिकतर बहुत बातें करने वाले, माता से विशेष लगाव, माता रचनात्मक विचार वाली | शिक्षा में रुकावट हो सकती है, सफलता के लिए उनको अपनी पसंद के विषय में ही अध्ययन करना चाहिए | उनका विषय से भावनात्मक सम्बन्ध भी हो सकता है | उपन्यासकार, लेखक या अध्यात्मिक लेखन वाले भी हो सकते हैं | शत्रु, रोग, कर्ज का पिता से सीधा सम्बन्ध हो सकता है, उनको अपने बॉस का अधिपत्य अच्छा नहीं लगता, उनको किसी के कण्ट्रोल में होना पसंद नहीं होता | जीवन साथी बहुत वास्तविक, वाचाल, परिवार को सँभालने वाली, पति के धन का सही प्रयोग करने वाली होती है | दीर्घ आयु, उच्च शिक्षा प्राप्त, धार्मिक विषयों पर बहुत ध्यान देने वाले, बोलचाल एवं गहराई में विचार करने वाले | फाइनेंसियल एडवाइजर, विद्वतापूर्ण कार्य, अच्छे वक्ता, उनके शब्दों में प्रमाणिकता होती है | स्वयं में मस्त रहने वाले, या कहें कार्यक्षेत्र में प्रसन्नचित्त रहने वाले | समाज में वे बहुत ही छांट कर लोगों से जुड़ते हैं, जीवन में लाभ प्रायः देरी से प्राप्त होता हैं | धन प्राप्ति लगभग ३२ की उम्र के बाद अच्छी होती है | विदेशों से अच्छा कमा सकते हैं |

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Computations

मीन लग्न के लिये शुभाशुभयोग :- (१) शुभयोग :-मंगल नैसर्गिक पापीग्रह है परन्तु वह नवम (प्रबल त्रिकोण) स्थान का स्वामी होने से श्लोक ६ के अनुसार शुभफल देने वाला होता है। यद्यपि वह मारक स्थान का स्वामी है फिर भी श्लोक ८ के अनुसार शुभफल देने वाला होता है। (२) शुभयोग :-चन्द्रमा नैसर्गिक शुभग्रह है और यहाँ पर पंचमेश (त्रिकोण का स्वामी ) होने से शुभफल देने वाला होता है। (३) शुभयोग:-नवमेश मंगल का दशमेश गुरु से योग हो तो (श्लोक ११ के अनुसार वह अशुभ है) शुभफल देने वाला होता है। (३) अशुभयोग:- शनि नैसर्गिक पापग्रह है और वह एकादशेश होने के नाते श्लोक ६ के अनुसार अशुभ है। इसके सिवाय वह द्वादशेश भी है । शनि अशुभ होकर अशुभफल दायक है। (४) अशुभयोगः -शुक्र नैसर्गिक शुभग्रह है परन्तु वह तृतीय स्थान का स्वामी है और श्लोक ६ के अनुसार अशुभ है। शुक्र अष्टम स्थान का भी स्वामी है। वह अशुभफल देने वाला होता है। (५) अशुभयोग :-सूर्य नैसर्गिक पापग्रह है। वह षष्ठेश होने के नाते श्लोक ७ के अनुसार अशुभ है और अशुभफल देने वाला है। (६) अशुभयोग •-बुध नैसर्गिक शुभग्रह है। वह सप्तम (मारक) केन्द्र का स्वामी है और चतुर्थ-सप्तम केन्द्रों का स्वामी होने से शुभ है और अशुफल देने वाला होता है। निष्फलयोग :--(१) मंगल+बुध सफलयोग :-(१) चन्द्र + गुरु; (२) मंगल + गुरु;

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