अश्विनी नक्षत्र

अश्विनी नक्षत्र वास्तव में मेष राशि में स्थित दो तारे हैं जिनके नाम बीटा और गामा मेष हैं। इन दो तारों की सीध में एक सुनहला बड़ा तारा अल्फा मेष है, जिसका पाश्चात्य नाम हमल (मेष, भेड़ा) है।

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Nakshtra Description

यूनानी कथाओं के अनुसार इन सुनहली भेड़ पर दो बच्चों ने सवारी की थी। भारतीय कथाओं के अनुसार भी अश्विनीकुमार दो जुड़वा भाई हैं, जिनके रथ का रंग स्वर्णिम है। इस नक्षत्र के नाम पर अश्विन मास का नाम रखा गया। इसका एक अन्य नाम क्वार है, जो इस नक्षत्र के देवता अश्विनी कुमार के कुमार अंश से व्युत्पन्न है। इस नक्षत्र का गामा तारा एक जुड़वा तारा है, जिनका रंग श्वेत-नील तथा तापक्रम 11,000 डिग्री सेंटीग्रेड है।



Computations

तारों की संख्या : 2 | तारों के वैज्ञानिक नाम : मेष मण्डल के बीटा, गामा तारे | अयनांश : 0° से 13°2' तक | राशि क्षेत्र : मेष | सूर्य का वास : 14 अप्रैल से 27 अप्रैल तक (लगभग)



Tree

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कुचिला

कुचिला बीज एक तरफ जहर है, जिसके अधिक खाने से जीव की मृत्यु हो जाती है, किन्तु कम मात्रा में लेने से व्यक्ति की इन्द्रियों को नया जीवन और शक्ति प्रदान करता है। हमारे देश में इसका बीज हजारों कुन्तल में एकत्र किया जाता है, जो सीधे बीज-रूप में या इससे निकाले गये रसायनों स्ट्रिच्नीन व ब्रुसीन के रूप में विदेशों को विभिन्न औषधि निर्माण हेतु निर्यात किया जाता है। लकवा इलाज, इन्द्रियों को शक्ति देने, पाचन-विकार व वात रोग दूर करने तथा थकान दूर करने में विशेष उपयोगी होता है। होम्योपैथी चिकित्सा पद्धति में इसका उपयोग आधुनिक खान-पान- प्रदूषण से होने वाले विकारों को दूर करने के लिए विशेषतः केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र व पाचन तंत्र के विकारों में योगकारी है।



Poranik Mahatav

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ये देववैद्य अर्थात् देवताओं के चिकित्सक के रूप में जाने जाते हैं। दृष्टिहीनों को दृष्टि प्रदान करना; बन्धनयुक्त अँधेरे दुर्गम स्थानों पर बन्द या फँसे लोगों को मुक्त करना; रोगी, अशक्त, लाचार, जीर्ण व वृद्ध काया वालों को स्वस्थ नवयुवक बना देना इनकी प्रमुख विशेषता है। अश्विनी नक्षत्र के देवता अश्विनी कुमार प्रसुप्त इन्द्रियों की सोई हुई शक्ति को जाग्रत करने अथवा उसमें पुनः शक्ति-संचार करने के लिए विशेष रूप से प्रसिद्ध हैं। अश्विनी नक्षत्र के वृक्ष कुचिला का औषधीय प्रभाव भी इसी प्रकार का होता है, बुढ़ाने में इन्द्रियों को ताकत प्रदान करने, लकवे से ग्रस्त अंग में पुनः शक्ति-संचार करने व पाचन-तंत्र को सही करने के लिए प्रयुक्त होता है, जो अपने नक्षत्र-देवता के गुणों से बिल्कुल मेल खाता है।

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