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आश्लेषा नक्षत्र
आश्लेषा या आश्रेषा शब्द का अर्थ है आलिंगन करने वाली। सूर्य के इस नक्षत्र में पहुँचने पर खरीफ की फसल बड़ी होकर एक-दूसरे का आलिंगन करने लगती है। पाँच-छह तारों का यह नक्षत्र आकाश स्थित महासर्प (Hydra) का मुख है। यूनानी कथा है कि इस जलवासी सर्प के नौ मुँह थे, जिसे काटने पर नये सिर निकल आते थे। सर्प के मुख पर स्थित इन पाँच तारों से एक वृत्त बनता है, जिसमें लगता है कि तारे एक-दूसरे से आलिंगन (अश्लेष) कर रहे हैं।
तारों की संख्या 5 या 6 तारे का वैज्ञानिक नाम : महासर्प मण्डल के डेल्टा, एप्सिलोन, एटा रो, सिग्मा व सम्भवतः क्साई तारे। अयनांश 106°40' से 120°00' तक राशि कर्क सूर्य का वास 3 अगस्त से 17अगस्त तक (लगभग)
यह मध्यम से बड़ी ऊँचाई वाला, सुन्दर, सदाहरित वृक्ष है जो मुख्य रूप से आसाम क्षेत्रों के आर्द्र वनों में पाया जाता है। प्राकृतिक रूप से यह केरल व तमिलनाडु के पश्चिमी घाट व अन्डमान निकोबार में भी पाया जाता है। वैज्ञानिक भाषा में इसे मेसुआ फेरिया या मेसुआ नागस्सेरियम कहते हैं। अंग्रेजी में इसे 'आइरन वुड ट्री' (बहुत कठोर लकड़ी के कारण) कहते हैं। इसकी लकड़ी का व्यापारिक नाम नाहोर है।
यह पुराने बुद्ध विहारों के पास आसाम में प्रायः देखा गया है। इसके पुष्य भगवान् विष्णु को चढ़ाए जाते हैं।